SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भक्ति से सम्बन्धित है । 'पंचकल्याणक रासु में जैन तीर्थंकरों के पंचकल्याणकों के प्रति भक्तिभाव प्रदर्शित किया गया है । ooooo afa ठक्करसी (वि० सं० १५७८) खण्डेलवाल जाति में उत्पन्न हुए थे । उनका गोत्र पहाड्या था। उनके पिता का नाम होल्ह था, जो एक कवि थे । उनकी माता धर्मनिष्ठ थी । ठक्करसी की प्रसिद्ध रचना "कृपरण चरित्र" पहिले से ही विदित है । इस काव्य का मुख्य श्रंश कृपरण की कृपरगता से संबंधित होते हुए भी भक्ति से युक्त है । इसके अतिरिक्त इनकी नवीन कृतियां मेघमालाव्रतकथा, पंचेन्द्रिय बेलि, मिसुर की बेल, पार्श्वसकुन सत्ता बत्तीसी, गुणबेल, चिन्तामरिण, जयमाल और सीमान्धर स्वामी स्तवन, विविधशास्त्र भण्डारों से प्राप्त हुई हैं । इनमें काव्य सौन्दर्य की दृष्टि से पंचेन्द्रिय बेल, नेमिसुर की बेल और गुणबेल उत्तम हैं । सत्रहवीं शती के जैन हिन्दी कवियों का भक्ति परक काव्य भाव और भाषा दोनों ही दृष्टियों से प्रौढ़ है । इसी शर्तों के जैन कवि महाकवि हैं । उनकी गणना यदि एक ओर कबीर और जायसी की कोटि में होनी चाहिये, तो दूसरी श्रर वे सूर और तुलसी की पंक्ति में बैठने योग्य हैं । कुमुदचन्द्र इसी शती के प्रारम्भ में हुए थे । उनकी रचनाओं में ऋषभ - विवाहला और भरत बाहुबलिछंद उत्तम हैं । ब्रह्मरायमल्ल ( वि० सं १६१५ ) ने अनेकानेक हिन्दी काव्यों की रचना की । इनकी भाषा सरस है और प्रसाद गुरण से युक्त है। ये रायमल्ल, १६वीं शती के प्रसिद्ध पंडित राजमल्ल से पृथक हैं। इनका जन्म हूँबड़ वंश में हुआ था, उनके पिता का नाम मह्य और माता का नाम चम्पा था । उनकी माता जिनेन्द्र भक्त थीं, अतः वे भी 'जिनपादकंजमधुप' बन सके। इनके गुरु का नाम अनन्तकोति था । नेमीश्वररास, हनुवंतकथा, प्रद्युम्नचरित, सुदर्शनरास, श्री पालरास और भविष्यदत्त कथा, ब्रह्मरायमल्ल की हिन्दी की कृतियां हैं। इनमें नेमीश्वर रास और हनुवंतकथा की विशेष ख्याति है । हनुवंतकथा में बालक हनुमान के प्रोजस्वरूप का चित्र खींचा गया है । यह रूप बालक के उदात्ततापरक पक्ष को पुष्ट करता है। एक पद्य देखिए: " बालक जब रवि उदय कराय । अधकार सब जाय पलाय ॥ बालक सिह होय प्रति सूरो । दन्तिघात करे चकचूरो ॥ 55555555 5555555
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy