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________________ PARELF - 20 --- Manan : VERSE HERECTamanand THEHRE KntimaanANE PunालकाPORINomal MEHAR मरहत निसीदिया समीपे पाभारे..........' पाठ पाया है। इससे निषीधिका की प्राचीनता सिद्ध होती है। उससे समाधिमरण की प्राचीनता तो स्वमेव प्रमाणित है। वास्तव में ये निषोधिकाएँ जैन मुनियों और साधुओं की स्मारक हैं। वे स्तूप भी इसके पर्यायवाची हैं, जो समाधिमरण करने वाले किसी महापुरुष की स्मृति में निर्मित हुए थे। प्राचार्य स्थूलभद्र ने वी० नि० सं० २१९ और ईसा-पूर्व ३११ में शरीर-त्याग किया। माज भी उनका समाधि-स्थान एक स्तूप के रूप में पटना में गुलजार बाग स्टेशन के पिछले भाग में स्थित है। प्रसिद्ध यात्री श्युपानचुआंग ने इसे देखा था।२ श्रवण वेल्गोल के जो लेख प्रका. शित हुए हैं, उनसे सिद्ध होता है कि वहाँ समाधिमरण से सम्बन्ध रखने वाले मुनि, अजिकामों व श्रावक-श्राविकाओं के लेखयुक्त कई स्मारक हैं, जिनमें सर्वप्राचीन समाधिमरण का लेख शक० सं० ५७२ का है । समाधिमरण की भावना जैन परम्परा में आज भी 'दुक्खक्खनो कम्मक्खो समाधिमरण च बोहिलाहो वि । मम होउ तिजगबन्धव तव जिरणवर चरण सरणेण' की भावना पाई जाती है । समाधिमरण धारण करने वाले का यह प्राकुल भाव भिन्न-भिन्न युगों, स्थानों और भाषा-उपभाषाओं में व्यक्त होता रहा है। यहाँ प्राचार्य पूज्यपाद की समाधि-भक्ति के कतिपय श्लोकों को उद्ध त किया जा रहा है। संस्कृतसाहित्य के सभी भक्त-कवियो ने कुछ कम-बढ़ रूप में इसी भाव को स्पष्ट किया है : शास्त्राभ्यासो जिनपतिनुतिः संगतिः सर्वदायें: सद्वत्तानां गुणगणकथा दोषवादे च मौनम् । सर्वस्यापि प्रिय-हितवचो भावना चात्मतत्वे सम्पद्यन्तां मम भवभवे यावदेतेऽपवर्ग: ।।२।। हे भगवन् ! मैं भव-भव में शास्त्राभ्यास, भगवान् जिनेन्द्र की विनती, सदा प्रार्यों के साथ संगति, अच्छे चरित्र वालों के गुणों का कथन, दूसरों के दोषों के १. जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग १६, किरण २, पृ० १३५-३६ २. मुनि कान्तिसागर, खोज की पगडण्डियाँ, पृ० २४४, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी। ३. प्राचार्य पूज्यपाद, समाधि-भक्ति, संस्कृत भाषा में है, यह शोलापुर से मुद्रित समाधि भक्ति में प्रकाशित हो चुकी है। VARTANTuote ३३355555555 A
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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