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________________ PENERAL MITMENSTATI R AIN SH S HETTE जाता है।' उसे नष्ट करने का प्रयास नहीं करना पड़ता। परम समाधि में तो सभी इच्छाएं विलीन हो जाती हैं, यहां तक कि आत्मा के साक्षात्कार की अभिलाषा भी नहीं रहती। इसके अतिरिक्त जैन आगमों में प्रायु-कर्म को बहुत प्रबल माना गया है। चार घातिया कर्मों को जीतने वाले महन्त को भी प्रायु-कर्म को बिल्कुल क्षीण होने तक इस संसार में रुकना पड़ता है। इस तथ्य को जानने वाला जैन मुनि आत्म-घात का प्रयत्न नहीं कर सकता। तीर्थकर का स्पष्ट निर्देश है कि आत्मघात करने वाला नरकगामी होता है। जैन शास्त्रों में समाधिमरण का उल्लेख प्राकृत भाषा के 'दिगम्बर प्रतिक्रमरण-सूत्र' में 'पण्डितमरण' शब्द का प्रयोग हुआ है। वहां उसके तीन भेदों का भी विशद वर्णन है । यह 'प्रतिक्रमण सूत्र' गौतम गणधर द्वारा रचित माना जाता है। प्राचार्य कुन्दकुन्द ने अपनी सभी प्राकृत भक्तियों के अन्त में भगवान् जिनेन्द्र से-“दुक्खक्खो कम्मक्खनो बोहिलाहो, सुगइगमरणं समाहिमरणं जिणगुण सम्पत्ति होउ मज्झ" के द्वारा समाधिमरण की याञ्चा की है। अनगारों की वन्दना करते हुए उन्होंने लिखा है, एवं मएऽमित्थुया प्रणयारा रागदोसपरिमुद्धा संघस्स वरसमाहिं मज्झवि-दुक्खक्खयं दितु ।२ वट्टकेरस्वामीकृत 'मूलाचार' में भी अनेकों स्थानों पर समाधिमरण का प्रयोग हुआ है। श्री यतिवृषभाचार्य ने 'तिलोयपण्णति' के चउच्थमहाधिकार' में कत्तिय बहुल्लसंते सादीसुदिणयरम्मि उग्गमिए । कियसण्णा सा सव्वे पावंति समाहिमरणं हि गाथा की रचना की है, इससे समाधिमरण प्राप्त करने की अभिलाषा स्पष्ट है। श्री शिवार्यकोटि की 'भगवती-पाराधना' समाधिमरण का ही ग्रन्थ है। इसमें समाधिमरण-सम्बन्धी नियम-उपनियमों और भेद-प्रभेदों का विस्तार के १. परमात्मप्रकाश, दोहा, पृ० ३२८ २. देखिये प्राचार्य कुन्दकुन्द-कृत योगिभक्ति, गाथा २३, दश-भक्तिः, प्राचार्य प्रभाचन्द्र की संस्कृत-टीका और पं० जिनदास पार्श्वनाथ के मराठी-अनुवाद सहित, पृ० १८६, शोलापुर, १९२१ ई० ३. प्राचार्य यतिवृषभ, तिलोयपण्णत्ति, डा० ए० एन० उपाध्ये-सम्पादित, चउत्य महा धिकार, १५३१ वी गाथा, पृ० २४५, जन संस्कृति संरक्षक सघ, शोलापुर, १९४३ ई० TANT f orcedARPATRA
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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