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________________ A0004 प्रकाश योगसार का तथा पुष्पदन्त के महापुराण का प्रादर्श सम्पादन किया । उनकी भूमिकाएँ तो शोध निबन्ध ही हैं। इतना परिश्रम भाज के विद्वान नहीं कर पाते । डॉ० उपाध्ये को मैंने सतत कार्यरत देखा है । I बौद्धों के अपभ्रंश साहित्य को प्रकाशित करने का श्रेय म० म० हरप्रसाद शास्त्री को है । उन्होंने 'बौद्धगान और दूहा' के द्वारा, बौद्धों को अपभ्रंश साहित्य का सर्वप्रथम परिचय कराया। डॉ० शहीदुल्ला और डॉ० बागची ने भी बौद्ध अपभ्रंश साहित्य के सम्पादन में रुचि दिखाई है । इधर, राजस्थान के ग्रन्थ भण्डारों की तालिकाए डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल ने तैयार की हैं। उनका प्रकाशन भी महावीर भवन, जयपुर से हो गया है । उनमें अनेकानेक अपभ्रंश ग्रन्थों की सूचना है। पं० परमानन्द शास्त्री ने 'जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह' भाग २ में अपभ्रंश के प्रसिद्ध ग्रंथों की प्रशस्तियाँ और कवियों का परिचय दिया है । ग्रन्थ ठोस और महत्वपूर्ण है । नागौर के ग्रन्थ भण्डार को खोजने की महती श्रावश्यकता है। एक बार उसके भट्टारक जी से आगरा में भेंट हुई थी। उनके अनुसार इस भण्डार में अपभ्रंश की विविध कृतियाँ हैं। मैं डॉ० भोलाशंकर व्यास के इस कथन से पूर्ण सहमत हूँ कि "अपभ्रंश की प्रसंख्य पुस्तकें प्राज भी जैन भण्डारों में भरी पड़ी हैं ।" " जैन अपभ्रंश साहित्य को प्रबन्ध काव्य, खण्ड काव्य, रूपक, रासा, मुक्तक, चर्चरी आदि कई भागों में बांटा जा सकता है। उसके पूर्ण परिचय के लिए एक पृथक् प्रामाणिक ग्रन्थ की आवश्यकता है। यह सच है कि कोई स्वतन्त्र नाटक अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है । संस्कृत नाटकों में अपभ्रंश गद्य-पद्य के उद्धरण बिखरे मिल जाते हैं । जैन अपभ्रंश का कोई स्वतन्त्र गद्य-ग्रंथ भी प्राप्त नहीं हुआ है । कुवलयमालाकहा (उद्योतन सूरि-रचित) में यत्र-तत्र प्रपभ्रंश गद्य मिल जाता है । इसके दो शिलालेख भी अपभ्रंश गद्य में हैं । विद्वान् अपभ्रंश साहित्य का प्रारम्भ वि० सं० ६०० से मानते हैं, जो मोटे तौर पर अबाध गति से १२०० तक चलता रहा। यद्यपि वि० सं० १००० से प्राचीन हिन्दी युग प्रारम्भ हो गया था, किन्तु वह रही अपभ्रंश - बहुल हो । १. हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास, प्र० मा०, पृ० ३३८ । २. रायबहादुर हीरालाल का इन्सक्रप्शन, ना० प्र० प०, माय ६, अङ्क ४, पृ० ५, दूसरा लेख बम्बई म्युजियम में सुरक्षित है। 199996999365566666
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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