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________________ RADHANS MEREMONE 2:17.. serime: mamawesomnia maharashtra Nation ... किया था। श्री अगरचन्द नाहटा का कथन है कि उनकी यह रचना 'वाचक' पद प्राप्ति के पास-पास की है । लगभग ४० वर्ष पूर्व यह रास 'जनयुग', अंक, पृष्ठ ३७० पर, बड़ोदा के लालचन्द भगवानदास के गुजराती अनुवाद के साथ प्रकाशित हुमा था। इसके बाद दो हस्तलिखित प्रतियाँ और प्राप्त हुई। तीनों को ध्यान में रखकर अब श्री नाहटा जी ने इसका प्रकाशन सम्मेलन पत्रिका, भाग ५५, संख्या १,२ पृष्ठ ५६-६४ पर करवाया है। इसमें ३५ पद्य हैं। जहाँ तक भाषा का सम्बन्ध है-इसे पुरानी हिन्दी निश्चित रूप से कहा जा सकता है। पुरानी राजस्थानी, गुजराती और हिन्दी के मूल रूपों में अन्तर नहीं था। इसलिए उस युग की कुछ कृतियों को राजस्थानी, गुजराती और हिन्दी तीनों साहित्य में स्थान मिला हुआ है । इसमें खींचतान की बात बिल्कुल नहीं है। अगरचन्द नाहटा का कथन दृष्टव्य है, "अपभ्रंश भाषा से, प्राचीन राजस्थानी, गुजराती और हिन्दी भाषाओं का निकास प्रायः समकाल में ही हुआ, इसलिये साधारण प्रान्तीय भाषा भेद के अतिरिक्त इन भाषाओं में बहुत कुछ समानता ही थी।" शायद इसी कारण, राजस्थानी के आदिकाव्य 'ढोलामारू रा दूहा' को, डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हेमचन्द्राचार्य के व्याकरण में प्राप्त दोहों और बिहारी सतसई के बीच की कड़ी कहा है । २ 'ढोलामारू रा दूहा' के सम्पादकों ने लिखा था, "हिन्दी भाषा के प्रादिकाल की पोर दृष्टि डालने पर पता लगता है कि हिन्दी के वर्तमान स्वरूप के निर्माण के पूर्व गाथा और दोहा साहित्य का उत्तर भारत की प्रायः सभी देशी भाषाओं में प्रचार था। उस समय की हिन्दी और राजस्थानी में इतना रूपभेद नहीं हो गया था, जितना आजकल है। यदि यह कहा जाये कि वे एक ही थीं तो अत्युक्ति न होगी। उदाहरणों द्वारा यह कथन प्रमाणित किया जा सकता है।"3 इस पर डॉ० द्विवेदी का मत है, "लेकिन राजस्थान के साहित्य का सम्बन्ध सिर्फ हिन्दी से ही नहीं है, एक ओर उसका अविच्छेद्य सम्बन्ध हिन्दी साहित्य से है, तो दूसरी ओर उसका घनिष्ठ सम्बन्ध गुजराती से है। कभी-कभी एक ही रचना को एक विद्वान् पुरानी राजस्थानी कहता है तो दूसरा विद्वान् उसे जूनी गुजराती कह देता है ।" इसी १. सम्मेलन पत्रिका, भाग ५५, संख्या १-२, पृ० ५६ । २. हिन्दी साहित्य का प्रादिकाल', पटना, पृ० ६ । ३. वही, पृ०६। ४. वही, पृ.६। 55 55 55 55 55 55 555555
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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