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________________ 1 उनका दूसरा ग्रन्थ ' बनारसी विलास' है ।" इसमें बनारसीदास की ५० रचनाओं का संकलन है। सभी मुक्तक हैं। उनमें 'कर्मप्रकृतिविधान' नाम की अन्तिम कृति भी है, जो फागुन सुदी ७, वि० सं० १७०० को समाप्त हुई थी। 'सूक्त मुक्तावली" संस्कृत के सिन्दूर प्रकरण का पद्यानुवाद है । इसमें कुछ पद्य बनारसीदास के मित्र कुरपाल के रचे हुए हैं। 'ज्ञान बावनी' पीताम्बर नाम के किसी कवि की रचना है। उसमें बनारसी का गुण-कीर्तन किया गया है। अवशिष्ट पूर्ण रूप से बनारसीदास की रचनाएँ हैं। इस ग्रंथ का संकलन मागरे के दीवान जगजीवन ने वि० सं० १७०१ में किया था। समस्त भारतवर्ष के जैन सरस्वती भण्डारों में 'बनारसी विलास की हस्तलिखित प्रतियाँ उपलब्ध होती हैं । ऐसा लोकप्रिय था यह ग्रन्थ । श्राज भी उसकी ख्याति प्रक्षुण्ण है । 'नाटक समयसार' बनारसीदास की एक समर्थ रचना है । यद्यपि यह प्राचार्य कुन्दकुन्द के समयसार ( प्राकृत) और उस पर रचे गये प्रमृतचन्द्राचार्य के संस्कृत कलशों को आधार बनाकर लिखा गया है, किन्तु उसकी मौलिकता भी सन्देह से परे है । मैं इस विषय पर अपने निबन्ध 'नाटक समयसार' में पर्याप्त रूप से लिख चुका हूँ। इसका अन्तः अनुपम था तो बाह्य भी कम सुन्दर न था। दोनों गुलाब की सुगन्धि और पंखुड़ियों से एक-दूसरे के पूरक हैं । बनारसीदास की लेखनी में शक्ति थी । 'नाटक समयसार' उसका सच्चा निदर्शन है । उन्होंने 'नाममाला', 'मोह-विवेक-युद्ध', 'माझा' आदि अन्य कृतियों का भी निर्माण किया । इधर उनके रचे कुछ नये पद्य भी भंडारों में उपलब्ध हो रहे हैं । 'मोह-विवेक -युद्ध' बनारसीदास की रचना है या नहीं, एक विवाद ग्रस्त प्रश्न है । अभी तक वह बनारसीदास की कृति ही मानी जाती है । मेरी दृष्टि में वह बनारसीदास की कृति नहीं है । पृथक निबन्ध का विषय है, फिर लिखूं गा । उस समय प्रागरे में एक अध्यात्मियों की सैली ( गोष्ठी) थी, जिसमें सदैव अध्यात्म चर्चा हुआ करती थी । बनारसीदास उसके सदस्य बने । उनके ५ साथी से १. हिन्दी ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई और नातूलाल स्मारक ग्रंथमाला, जयपुर प्रकाशित हो चुका है । २. पं० नाथूराम प्रेमी के सम्पादन के साथ बम्बई से और स्व० पं० जयचन्द्रजी की Her cer के साथ, सस्ती ग्रन्थमाला, देहली से प्रकाशित हुआ है । ३. सम्मेलन पत्रिका, वर्ष ४९, भाग ३-४, पृष्ठ ५८-७१ । फफफफफफ 99€
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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