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________________ यह सिद्ध है कि हिन्दी का जन मुक्तक-काव्य, अपभ्रंश के भक्तिपरक साहित्य से प्रभावित है । अभी तक भगवद्विषयक वात्सल्य रस के निरूपण में, हिन्दी के सूरदास एकमात्र कवि थे । अब जैन हिन्दी साहित्य के प्रालोडन से प्रमाणित हुआ है कि वात्सल्य रस से सम्बन्धित जैन हिन्दी-कवियों की रचनाएँ भी अनूठी हैं । यद्यपि यह सच है कि जैन कवि बाल-तीर्थङ्कर की विविध मनोदशाओं का वैसा निरूपण नहीं कर सके हैं, जैसा सूर ने बालकृष्ण का किया है। किन्तु, इसके साथ यह भी सत्य है कि बालक के गर्भ और जन्म-सम्बन्धी दृश्यों को जैन कवियों ने जैसा चित्रित किया है, सूरदास छू भी नहीं सके हैं। मैं भूधरदास को इन चित्रों का सबसे बड़ा कलाकार मानता हूँ । उपमा, उत्प्रेक्षा और निरंग रूपकों को छटा से उनके चित्रों सजीवता प्रा गई है । इन्द्र की प्राज्ञा से धनपति ने महाराज अश्वसेन के घर में साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा की । श्राकाश से गिरती मरियों की चमक ऐसी मालूम होती थी, जैसे स्वर्गलोक की लक्ष्मी ही तीर्थङ्कर की मां की सेवा करने चली प्राई हो ।' दुन्दुभियों से गम्भीर ध्वनि निकल रही थी, मानों महासागर ही गरज रहा हो । २ सद्यः प्रसूत बालक को लिये मां ऐसी प्रतीत होती थी, मानों बालक भानु सहित संध्या ही हो। तीर्थङ्कर की मां की सेवा करती हुई रुचिकवासिनी देवियों का व्यस्त जीवन, जन्मोत्सव मनाने के लिए इन्द्र-दम्पति का प्रयाग, पांडुकशिला पर स्नान, फिर तीर्थंङ्कर के मां-बाप के घर में नाटकादि के प्रायोजन का दृश्य, भूधरदास के पार्श्वपुराण में ऐसा श्रकित किया गया है कि पाठक भाव-विभोर हुए बिना नहीं रह पाता । पांडे रूपचंदजी ने भी इन्हीं बातों का वर्णन गर्भ और जन्म कल्याणकों में किया है। किन्तु, कल्पनागत सौन्दर्य भूधरदास में अधिक है । कवि द्यानतराय, बनारसीदास, कुशललाभ और मेरुनन्दन उपाध्याय ने भी वात्सल्य रस का यत्र-तत्र वर्णन किया है । १. २. ३. नमसों श्रावै लकती, मनिधारा इहि भाय । सुरगलोक लछमी कधी, सेवन उतरी माय ॥ - पार्श्वपुराण, कलकता, ५-५८, पृ० ४४ । प्रतिदिन देव दुदमी बजे, कियों महासागर यह गजे । - देखिए पाश्पुराण, कलकत्ता, पृ० ४४ । सुतराग रंगी सुखसेज मांझ, ज्यों बालक भानु समेत सांझ । - देखिए वही, पृ० ५० । 55555555 १०३ 555555555 159596699
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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