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________________ "भगति करवि बहु रिसह जिरण, वीरह चलरण नमेवि । हउं चालिउ मरिण भाव घरि दुइरिग जिरगमरिण समरेवि || इन्हीं जिनेश्वरसूरि के शिष्य अभयतिलक ने वि० सं० १३०७ वैसाख शुक्ला १० को 'महावीर रास' लिखा था। उसमें २१ पद्य हैं। इसे भगवान् महावीर की स्तुति ही कहना चाहिए। लक्ष्मीतिलकका 'शान्तिनाथ देवरास'" और सोममूर्ति का 'जिनेश्वरसूरि संयमश्री विवाहवनरास', २ भक्ति से सम्बन्धित प्रसिद्ध काव्य हैं । 3 श्रम्बदेवसूरि, नागेन्द्रगच्छ के प्राचार्य पासडसूरि के शिष्य थे । उन्होंने वि० सं० १३७१ के लगभग संघपति 'समरारास' का निर्मारण किया था । श्रोसवाल शाह समरा सघपति ने वि० स० १३७१ में शत्रु जय तीर्थक्षेत्र का उद्धार करवाया था । इस रचना में उसी का वर्णन है । इसकी भाषा में राजस्थानी के शब्द अधिक हैं । इससे अम्बदेव का जन्म राजस्थान में कही हुआ था, ऐसा अनुमान होता है । इस रास की भाषा का सादृश्य गुजराती की अपेक्षा हिन्दी से अधिक है । जब समरा शाह ने पट्टन से संघ निकालकर शत्रु ंजय की और प्रयाग किया, उस समय का एक पद्य देखिए, "बाजिय संख प्रसख नादि काहल दुदु दुडिया, घोड़े चड़इ सल्लारसार राउत सीगड़िया । तउ देवालउ जोत्रि वेगि धाधरि रवु भमकइ, सम विसम नवि गरइ कोई नवि वारिउ थक्कइ ॥ ' जिनप्रभसूरि ( १४ वी शताब्दी वि० स० ) खरतरगच्छीय जिनसिहसूरि के शिष्य थे । उन्होंने 'पद्मावतीदेवी चौपई' की रचना की थी । यह कृति अहमदाबाद से प्रकाशित 'भैरव पद्मावती कल्प' में छप चुकी है । यह देवी पद्मावती की भक्ति से सम्बन्धित है । एक पद्य इस प्रकार है "श्रीजिन शासरण वधाकरि, क्षायहु सिरि पउमावइ देवि । भविय लोय आणंद वरि, दुल्हउ सावयजम्म लहेवि ॥' 17 १. महावीररास प्रोर शान्तिनाथ देवरास, श्री अगरचन्द नाहटा के निजी संग्रह मे मौजूद है । २. जैन ऐतिहासिक काव्य संग्रह मे छप चुका है । ३. प्राचीन जैन गुर्जरकाव्य संग्रह मे संकलित है । 256747676765K फफफफफफ
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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