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________________ 3 उन्होंने पत्थर की मूर्ति के पूजने को मझधार में डूबने के समान माना है । ' दादू का कथन भी मिलता-जुलता है-"कोई द्वारका दौड़ता है, कोई काशी श्रौर कोई मथुरा; किन्तु साहिब तो घट के भीतर मौजूद हैं।” २ संत कवि की यह मान्यता कवियों में अधिकाधिक देखी जाती है । 'परमात्मप्रकाश' में लिखा है"आत्मदेव न तो देवालय में रहता है, न शिला में, न लेप्य में और चित्र में, वह तो समचित्त में निवास करता है ।" ३ योगीन्दु ने योगसागर में भी लिखा- "श्रुतः केवली ( सब विद्याओं का पूर्ण जानकार ) ने कहा है कि तीर्थों में, देवालयों में देव नहीं है, वह तो देह - देवालय में विराजमान रहता है, इसे निश्चित समझो । यह सासारिक जीव उसके दर्शन मन्दिरों में करना चाहता है, यह उपहासास्पद है ।" ४ मुनि रामसह ने पाहुड़दोहा में उनको मूर्ख कहा है, जो शिव को देवालयों में ढूंढते फिरते हैं, अपने देह - मन्दिर को नहीं देखते, जहा वह है । श्रानन्दतिलक का कथन है ५ महात्मा अठसटि तीरथ परिभमइ, मूढा मरहि भमंतु । प्पा बिन्दु न जाणहीं, आणंदा घट महि देउ श्ररणंतु ॥ ६ १. पाहा केरा पूतला करि पूर्ज करतार | वूढे काली धार ॥ इसी भरोस जे रहे, ते २. दादू केई दौड़े द्वारिका, - देखिए वही, पहला दोहा । केई कासी जाहि । bananar कई मथुरा कों चले, साहिब घट ही मांहि || -- दादू की वारणी, यशपाल - संपादित, दिल्ली, ४. तिथहि देवलि देउ रवि इम सुइकेवलिवुत्त । देहा देवलि देउ जिणु एहउ जागि गिरत ||४२ ॥ देहा देवलि देउ जिणु जणु देवर्लाहि रिगएइ । हासउ मह पsिहाइ इहु सिद्ध भिक्ख ममेइ ||४३|| पृ० २६ का अन्तिम पद्य । ३. देउ र देउले गवि सिलए बि लिप्पइ गवि चित्ति । श्रखउ गिरजुग गागमउ सिउ संठिउ समचिति ॥ -- परमात्मप्रकाश, १।१२३, पृ० १२४ । ५. मूढा जोवइ देवलइ लोर्याह जाइ कियाई । देह ग पिच्छs जपरिणय जहि सिउ सत ठियाई ।। १५० ।। ६. देखिए 'आणंदा' की हस्तलिखित प्रति, ( आमेर - शास्त्र भंडार, जयपुर), पद-सं० ३ । फफफफफफफ ६६ *5*55554
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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