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________________ - 10] कासूर मनवर तप्रधान विजयधनसंग्रहधनेश्वरमखिकजगद्वर्तिकीर्ति गंगोद्वहनमहेश्वरमनुकृष्टाष्टदिक्पाळमशेषराजर्षि मूर्धाभिषिक्तं पितरं सत्यवाक्यभूपतिमनुकुर्वता मारसिंहदेवेन मेल्पाटिशिबिरमधिवसति विजयस्कन्धावारे शकनृपकाळातोतसंवत्सराष्टशतेषु चतुरशीत्यभ्यधिकेषु दुंदुभिसंवत्सरांतर्गतपौषमासबहुळपक्षनवम्यां मंगळवारस्वातिमक्षत्र गरजकरणष्टतियोगसंयोगिनां कन्यालग्ने तत्समयसमाविर्भूत जिनसवनजनितानंदमनुजमुनिजनसमाजकोलाहल कलकछापूरितदिशायां तत्काल निराकुलसंचलत्कखिचंडालसंपर्क पातकातंकपं कक्षालनोद्य तजगज्जनमज्जनक्षोभित भूतलप्रतीतगंधीदकप्रवाहसहितायाम् उत्तरायणसंक्रांत्यां तस्मै एलाचार्य मुनीश्वराय सकळ भूपाळमौलिमाळामकरंदरजःपुंजपिंजरितचरणारविंदयुगलाय शिशिर - करनिकरविशदयशोराशिविशदीकृत सकळमहीतळाय जिनामिषेकगंधजलधारापुरस्सरं कोंगलदेशांतर्वर्ती कालूरनामा ग्रामो दस अस्य सीमा ( इस के बाद कन्नड में सीमा का विस्तृत विवरण तथा अन्त में दान की रक्षा के लिए शापात्मक श्लोक हैं ) । इस ताम्रशासन का सक्षिप्त विवरण जं० शि० सं० भाग ४ में दिया है ( लेख क्र० ८५ ) ' उस समय मूल पाठ नही मिल सका था । ९ ताम्रपत्रो पर लिखे गये इस लेख का प्रारंभिक गद्यभाग तथा ३२ वें श्लोक तक का पद्यभाग गंग राजाओं को वंशावली का वर्णन करता है जो प्रायः जै० शि० सं० भाग २ के लेख १२२ तथा १४२ के समान है । तदनंतर गग राजा बूतुग जयदुत्तरंग की पत्नी कल्लब्बा ( जो चालुक्य राजा सिंहवर्मा को कन्या थी ) के पुत्र मारसिंह ( द्वितीय ) का वर्णन है । इनके भाई का नाम मरुळ था । मारसिंह ने उन को माता द्वारा कोंगल देश में निर्मित जिनमंदिर के लिए सूरस्त गण के एळाचार्य को कादलूर ग्राम दान दिया था । उस समय वे मेलपाटि के स्कन्धावार में थे। दान की तिथि पौष वदी ९ मंगलवार शक ८८४ दुंदुभि संवत्सर की उत्तरायण सक्रांति थी । एळाचार्य की गुरुपरम्परा - मूलसंध - सूरस्तगण के प्रभाचन्द्र
SR No.010114
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1971
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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