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________________ जैन - शिलालेख संग्रह [१६ अज्जलोणी ( वर्तमान स्थान अज्ञात ), चंदुहाण ( वर्तमान चौंधाणे जि० नासिक ), तथा दिवार ( वर्तमान देवरगाँव जि० नासिक ) ये छह गाँव asनेर ( नासिक जिले में यह ग्राम इसी नाम से अभी भी हैं ) की उरिअम्मवसति के लिए दान दिये गये थे । दानतिथि तथा अन्य सब विवरण पूर्वोल्लिखित प्रथम ताम्रपत्रो के अनुसार हो समझना चाहिए । १८ १६ राजौरगढ ( अलवर, राजस्थान ) सं० ९७९ = सन् ९३३, संस्कृत-नागरी पुलीन्द्र राजा के प्रसिद्ध शिल्पकार सर्वदेव द्वारा राज्यपुर में शातिनाथ मंदिर के निर्माण का इस मे वर्णन है । वह पूर्णतल्लक से निकले हुए धर्कट वश के देलक का पुत्र तथा आर्भट का पौत्र था । सर्वदेव ने यह कार्य आग्रह से किया था । राजा सावट का भी उल्लेख है । सर्वदेव का पुत्र वराग था तथा गुरु आचार्य सूरसेन थे । इम प्रशस्ति की रचना सागरनंदि और लोकदेव ने की थी । रि० ३० ए० १९६१-६२, शि० क्र० बी १२८ १७ कालूर ( माडया, मैसूर ) शक ८८४ = सन् ९६२, संस्कृत - कन्नड चालुक्यान्वयमिहवनृपतेः पुत्री मता श्रीमती कल्लब्या जयदुत्तरंगनृपतेर्देवी महात्युत्तमा । सत्पुत्रोजनि मारसिंहनृपतिः श्रीसत्यवाक्याधिपः ख्यात श्रीमरुळस्थिरक्षितिभुजस्तस्यानुजः सांजसं ॥३३॥
SR No.010114
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1971
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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