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________________ -१२] एलोरा श्रीलोकादित्तन् तिरुक्को श्रीपिरुतिवि (न) चन् श्रीतिरुवि (र) म (न्) शीकायवन् वितिवलि शुणक्कुळम् रि०१० ए० १६६०-६१, प्रस्तावना पृ० १६ शि० क० बी ३२४ से ३३॥ मेडूर ( धारवाड, मैसूर) नौवी शताब्दी का प्रारम्भ, कन्नड राष्ट्रकूट सम्राट् प्रभूतवर्ष जगत्तुग ( गोविन्द तृतीय ) के अधीन बनवासि १२००० प्रदेश के शासक सळ कि वंश के राजादित्यरस द्वारा मल्लवे की बसदि ( जिनमंदिर ) के लिए मोनिगुरु के किसी शिष्य को कुछ भूमि दान दी गयी ऐसा इस लेख में वर्णन है। लेख किरुगुड्ड द्वारा उत्कीर्ण किया गया था। रि०३० ए० १६५८-५६, शि० क्र० बी ५८२ यह लेख प्रोग्रेस रिपोर्ट ऑफ दि कन्नड रिसर्च इन्स्टीटयूट (१९५२-५७) में (१० ७०-७१ कन्नड) में पूर्ण रूप में छपा है। १०.११.१२ एलोरा ( औरंगाबाद, महाराष्ट्र) लिपि-९वीं या १०वीं सदी की, संस्कृत-कबड गुहा नं. ३३ जगन्नाथसभा में ये तीन लेख अकित हैं। एक मे नागनंदि का नाम है। दूसरे में किसी बालब्रह्मचारी द्वारा पद्मावती की
SR No.010114
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1971
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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