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________________ मूल-लेख-विवरण पाला ( पूना, महाराष्ट्र) लिपि-सन्पूर्व दूसरी सदो की, ब्राह्मी-प्राकृत १ नमो अरहंतानं कातुन २ द मदंत इंदरखितेन लेनं ३ कारापितं पोढि च सह४ सिधं पुना जिले के पाला गांव के समीप वन मे स्थित एक गुहा मे यह चार पतियो का लेख है । इस गुहा की खोज पूना विश्वविद्यालय के श्री. आर० एल० भिडे ने की। लेख की पहली पक्ति मे पचनमस्कारमंत्र की पहली पक्ति अंकित है। अन्य पक्तियो में कातुनद ( जो सभवत किसी स्थान का नाम है ) के भदत (आदरणीय) इदरखित (इन्द्ररक्षित ) द्वारा लेन ( गुहा ) और पोढि ( जलकुण्ड ) बनवाये जाने का उल्लेख है। लिपि का स्वरूप देखते हुए यह लेख सन्पूर्व दूसरी सदी का प्रतीत होता है । यह महाराष्ट्र में प्राप्त जैन धर्म संबधी लेखों में सबसे पुरातन है । उपर्युक्त विवरण धर्मयुग साप्ताहिक, बम्बई के १५ दिसम्बर १९६८ के अंक मे डा० हसमुख धोरजलाल साकलिया के लेख में दिया है। वही प्रकाशित लेख के चित्र से ऊपर लेख का पाठ दिया है।
SR No.010114
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1971
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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