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________________ ३४ ६. उपसहार अन्त मे हम इस ओर विद्वानो का पुन जैन - शिलालेख संग्रह संकलन के कुछ विशिष्ट लेखो की उपलब्धियो की ध्यान दिलाना चाहते है । ( १ ) पाला के लेख से महाराष्ट्र में जैन साधुओ का अस्तित्व ईसवी सन् पूर्व दूसरी सदी मे प्रमाणित हुआ है । ( २ ) सोनागिरि के लेखो से इस स्थान की प्राचीनता सातवी सदी तक प्रमाणित हुई है । ( ३ ) वजीरखेड ताम्रपत्रों से महाराष्ट्र मे द्राविड संघ के अस्तित्व का तथा सम्राट् अमोघवर्ष के नाम पर स्थापित जिनमन्दिर का पता चला है । ( ४ ) द्वारहट के लेख से उत्तरप्रदेश के पर्वतीय जिलो मे जैन साध्वियो के विहार का प्रमाण मिला है । ( ५ ) देवगढ के लेखो से इस स्थान की प्राचीनता व लोकप्रियता प्रमाणित हुई है । ( ६ ) कोलनुपाक ( प्रसिद्ध नामान्तर कुलपाक ) के लेखो से इस तीर्थ की प्राचीनता नौवी सदी तक प्रमाणित हुई है । - ( ७ ) आन्ध्र प्रदेश के अनेक लेखो से वहीं नौवी से बारहवी सदी तक जैन समाज की समृद्ध स्थिति का पता चलता है । ( ८ ) चित्तौड़ के लेखो से कीर्तिस्तम्भ के स्थापक साह जीजा के परिवार का विस्तृत परिचय मिला है । ( ९ ) रामपुरा के लेखो से वहाँ के दीवान पाशाह के परिवार का विस्तृत परिचय मिला है । (१०) उखळद के लेखो से महाराष्ट्र में सोलहवी - सत्रहवी सदी मे कार्यरत जैन भट्टारको के इतिहास को महत्त्वपूर्ण सामग्री मिली है । इस संकलन को मिला कर इस शिलालेखसंग्रह मे लगभग २४०० लेखो का विवरण प्रकाशित हुआ है । इस सम्बन्ध मे अन्त मे हम कुछ विचार प्रकट करना चाहते हैं ।
SR No.010114
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1971
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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