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________________ जैन-शिलालेख-संग्रह थी। इस परिस्थिति में एक बड़ा सुधार तब आया जब दक्षिण भारत के एक प्राचीन तीर्थ स्थान श्रवणबेलगोल मे पाये जाने वाले ५०० शिलालेखों का एक ही जिल्द मे प्रकाशन हुआ। तब से जैनधर्म के साहित्यिक व ऐतिहासिक लेखो मे एक सुदृढ वैज्ञानिक दृष्टिकोण का समावेश होने लगा। माणिक चन्द्र-दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला के सम्पादक प० नाथूराम प्रेमी को तीव्र इच्छा थी कि देश के अन्य भागो में बिखरे हुए व प्रकाशित जैन शिलालेखो का भी उसी रीति से संग्रह कराकर प्रकाशन करा दिया जाये। उन की इस इच्छा और प्रयास का ही यह फल हुआ कि प्रथम भाग मे श्रवणबेलगोल-शिलालेख-संग्रह के अतिरिक्त द्वितीय और तृतीय भागो में उन साढे आठ सौ लेखो का भी आकलन हो गया जिन की सूची डॉ. गेरिनो ने १९०८ में प्रकाशित की थी इस के पश्चात् लेखसंग्रह का कार्य बडा कठिन हो गया क्योकि इन की कोई व्यवस्थित सूची भी उपलब्ध नही थी। किन्तु डॉ० विद्याधर जोहरापुरकर ने बडे परिश्रम से उन छह सौ चौवन लेखो का संग्रह चौथे भाग मे कर दिया जो १९०८ से १९६० तक प्रकाश में आये थे। और अब उन्ही के द्वारा सगृहीत किया गया यह पांचवा संग्रह प्रकाशित हो रहा है, जिस मे उन तीन सौ पचहत्तर जैन लेखो का सकलन है जिन का अन्यत्र स्फुट रूप से प्रकाशन १९६० ई० के पश्चात् हुआ है। इस प्रकार इस ग्रन्थमाला के इन ५ सग्रहो मे २००० से ऊपर जैन लेखो का सकलन हो चुका है। इन जैन शिलालेखो को अपनी विशेषता है। इन मे अन्य लेखो के सदृश राजाओ व राजवंशो की प्रशंसा तथा उन के द्वारा किये गये युद्धो, विजयो व राज्य-विस्तार आदि का वर्णन नही है । इन मे वणित घटनाएँ है-मन्दिरो का निर्माण, मूर्तियो की प्रतिष्ठा, जीर्णोद्धार व धार्मिक दानादि । इन घटनाओ के सम्बन्ध में ही यहाँ मुनियो की परम्परामो का भी उल्लेख पाया जाता है और प्रसंगवश तत्कालीन व तद्देशीय नरेशो, मत्रियो व गृहस्थो के उल्लेख भी आये है। इस प्रकार इन लेखो की प्रेरणा का
SR No.010114
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1971
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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