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________________ जैन शिलालेख संग्रह [ ३ लिपि सन्पूर्व ३री सदीको है । ये गुहाएँ श्रमणोंके लिए उत्कीर्ण की गयी थीं । ] [रि० सा० ए० १९३७-३८ क्र० ५३१ पृ० ५९ ] ३ खण्डगिरि ( ओरिसा ) - ( मंचपुरी गुहा - ऊपरका भाग ) प्राकृत - ब्राह्मी, सन्पूर्व पहली सदी १ अरहंतपसादाय कालिंगा ( नं ) ( सम ) नानं लेणं कारितं राजिनो कालाक २ हथिसाहस- पपोतस धु ( तु ) ना कलिंगच (कवतिनो सिरिंखा ) - वेलस (स) ३ अगम हिसि ( ना ) कारि ( तं ) [ अरहंतोंकी कृपासे कलिंग प्रदेशके श्रमणोंके लिए यह गुहा कलिंगचक्रवर्ती खारवेलकी महारानीने बनवायी । यह हस्तिसाहसके प्रपौत्र लालाकी कन्या थी ] [ ए० ई० १३ पृ० १५९ ] खण्डगिरि - ( मंचपुरी गुहा - नीचेका भाग ) प्राकृत - ब्राह्मी सन्पूर्व पहली सदी १ खरस महाराजस कलिंगाधिपतिनो महा ( मेघ ) वाह (नस ) कुपसिरिनो लेण [ कलिंगके अधिपति महाराज खर महामेघवाहन कुदेपश्रीने यह गुहा बनवायी । ] [ ए० ई० १३० १६० ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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