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________________ परिशिष्ट २ जैनेतर लेखोंमें जैन व्यक्ति प्रादिके उल्लेख । ( १ ) बेलगामे काड सन् १२९४ [ इस लेख में यादव राजा रामचन्द्रके समय बल्लिगावेके भेरुण्डस्वामीमन्दिरका उल्लेख है । इस मन्दिरके हेग्गडे पदपर वैद्य दासण्णकी स्थापना कर उसे कुछ भूमि अर्पित को गयी थी। इस भूमिमें प्रथमसेनबसदि ( जिनमन्दिर ) की कुछ भूमि भी शामिल कर दी गयी थी। ] [ ए०रि० मं० १९२९ पृ० १२४ ] (२-६) देवगेरी तथा कोलूर (जि० धारवाड, मंसूर ) ( ११वीं - १३वीं सदी ) - कड पहला लेख चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्यमल्ल ( सोमेश्वर प्रथम ) के राज्यकालका है । इनके अधीन बासबूर १४० प्रदेशमे जीमूतवाहन अन्वयमे उत्पन्न हुआ कलियम्मरस शासन कर रहा था । इसे सम्यक्त्वचूडामणि तथा पद्मावतीलब्धवरप्रसाद ये विशेषण दिये । इसने कोलूर के कलिदेवेश्वर के मन्दिर में दीपदानके लिए कुछ दान दिया था। इस दानकी तिथि पौष शु० ५, शक ९६७, उत्तरायण संक्रान्ति थी । दूसरे लेखकी तिथि शक १९७, पौष शु० १४, उत्तरायण संक्रान्ति थी । इस समय चालुक्य सम्राट् भुवनैकमल्ल सोमेश्वर द्वितीयका राज्य चल रहा था । इसमें भी कलियम्मरसके शासनका उल्लेख है तथा देवने सेके कांकलेश्वर मन्दिर के लिए दण्डनायक वण्णमय्य-द्वारा कुछ दान दिये
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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