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________________ २८ जैनशिलालेख-संग्रह १२८५ से १२९७ तक के हैं। पहले लेखमें सर्वाधिकारी मायदेव-द्वारा एक मन्दिरके निर्माणका वर्णन है, दूसरा एक समाधिलेख है, तीसरेमें एक मन्दिरके लिए दानोंका वर्णन है तथा चौथेमें महामण्डलेश्वर तिकमदेवके मन्त्रीके पुत्र-द्वारा एक मन्दिरके जीर्णोद्धारका उल्लेख है । (आ ११) विजयनगरके राजवंश-विजयनगर राज्यके कोई २० लेख प्रस्तुत संग्रहमें हैं। इनमें पहला (क्र० ३९३ ) सन् १३५५ का है तथा हरिहर राजाके समय एक जिनमूर्तिकी स्थापनाका इसमें उल्लेख है । बुक्क राजाके समयके दो लेख है (क्र० ३९४, ३९६), ये सन् १३५७ तथा १३७६ के हैं। पहला लेख एक जिनमन्दिरके अवशेषोंमे है तथा सेनापति बैचयका इसमें उल्लेख है। दूसरा एक समाधिलेख है । राजा हरिहर २ के सेनापति इरुगने एक जिनमन्दिर बनवाया था (क्र० ४०३)। तथा इस राजाके अधीन गोवाके शासक माधवके सेनापति नेमण्णने पार्श्वनाथमन्दिरको सन् १३९५ मे कुछ दान दिया था (क्र० ४०२)। सन् १३९५ के ही एक लेखमे बैचय दण्डनायकके पुत्र इम्मडि बुक्कमन्त्रीश्वर-द्वारा एक मन्दिरके निर्माणका वर्णन है (क्र० ४०४ )। राजा बुक्क २के समयके दो लेख है ( क्र० ४०६, ४१५) इनमे एक शान्तिनाथमन्दिरके निर्माणका स्मारक है तथा दूसरेमे लक्ष्मीसेन भट्टारकके समाधिमरणका उल्लेख है। राजा देवरायके समयके दो लेख है (क्र० ४२५, ४३४ )- पहला सन् १४१२ का है तथा दो मन्दिरोंकी सोमाओंके बारेमे एक समझौतेका इसमे वर्णन है। दूसरा सन् १४२४ का है तथा इसमे राजा-द्वारा नेमिनाथमन्दिरके लिए वरांग ग्रामके दानका वर्णन है। राजा मल्लिकार्जुनके समय सन् १४५० मे एक मन्दिरको मिले हुए दानोंका वर्णन एक लेखमे है ( क्र० ४४०)। कृष्णदेव महारायके समयके एक लेखमे ( क्र० ४५६ ) १. पहले संग्रहमें इस वंशके कई लेख हैं जिनमें पहला सन् १३५३ का है (ऋ० ५५८ )।
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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