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________________ ३५७ -५४२] सालूर आदिके लेख ५ र गुड्डि नादोश्वेय. ६ "नागय्यंगलु निलि७ सिद कल्लु'"सालियूर 5 "महाजन.... [ इस निषिधिलेखमें चन्द्रनाथदेवको शिष्या नादोव्वेके समाधिमरण तथा नागय्य-द्वारा इस निषिधिकी स्थापनाका उल्लेख किया है।] [ए. रि० मै० १९२७ पृ० १२९ ] ५४१ सक्करेपट्टण ( मैसूर ) काड १ श्रीमत्परमगंभीरस्थाद्वादामोघलांछन । जीया२ त् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं । श्रीमद् राजगुरु ३ .."मौनपाचार्य श्री होसूर शिष्य नूलवागि४ सेट्टिय मग नूलवन्दिसेट्टिय निषिधि ५ शार्वरि संवत्सरद ६ भाषाढ सुध १४ आदि [ यह निषिधिलेख होसूरके राजगुरु मौनपाचार्य के शिष्य नूलवागिसेट्टिके पुत्र नूलवन्दि सेट्टिका स्मारक है । तिथि आषाढ शु० १४, रविवार, शार्वरी संवत्सर, इस प्रकार बतलायी है। ] [एरि० म० १९२७ पृ० ६३ ] तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास ) तमिल [ इस लेखमे अप्पाण्डार ( चन्द्रप्रभ ) मन्दिरके इस गोपुरका निर्माण परमजिनदेवजीयर्-द्वारा किये जानेका उल्लेख है। लेखकी तिथि पंगुणि
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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