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________________ जैनशिलालेख-संग्रह [ ५३१ ५३१ हले हुब्बलि (जि. धारवाड, मैसूर ) शक १७८४ = सन् १८६२, काड [ यह लेख शक १७८४ का है । कहा गया है कि इस वर्ष एक नया जगट बनवाया गया । यह उस पुराने जगटसे बनवाया था जो यहाँके अनन्तनाथबसदिमे पिछले ११०० वर्षोंसे था।] ' [रि० सा० ए० १९४१-४२ ई० ३५ पृ० २५७ ] ५३२ चित्तामूर ( द० अर्काट, मद्रास) शक १७८७ =सन् १८६५, संस्कृत-ग्रन्थ [ यह लेख स्थानीय जिनमन्दिरके गोपुरकी दीवालपर है । इस गोपुरका निर्माण अभिनव आदिसेन भट्टारकने सार्वजनिक सहायतासे किया ऐसा उल्लेख है। तिथि ज्येष्ठ पूर्णिमा, शुक्रवार, शक १७८७ क्रोधन संवत्सर ऐसी दी है। इसी दीवालपर एक अन्य लेखमे जिनालयनिर्माणसे प्राप्त पुष्यको प्राप्त पुण्यको प्रशंसाके कुछ श्लोक है । ] [रि० सा० ए० १९३७-३८ ० ५१९-२०१० ५८ ] ५३३ मैसूर १६वीं सदी, कबड शान्तीश्वर बसतिमें सर्वाण्ह यक्षकी मूर्तिकं पादपीठपर इस लेखमें मरिनागय नामक व्यक्ति-द्वारा महिसूरके शान्तीश्वर बसतिमे सर्वाहयक्षको मूर्तिके पादपीठपर पीतलका आवरण लगानेका
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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