SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ जैनशिलालेख-संग्रह इसमें राजा विनयादित्य-द्वारा अभयचन्द्र पण्डितको दान दिये जानेका वर्णन है। सन् १०६९ के एक लेखमें विनयादित्य-द्वारा एक जिनमन्दिरके निर्माणका वर्णन है । ग्रामीण लोग गरीबीके कारण यह कार्य नहीं कर सके थे अतः राजाने सहायता देकर यह मन्दिर बनवाया था ( क्र० १५२) ग्यारहवीं सदी-अन्तिम चरणके एक लेखमें (क्र. १७५ ) वर्धमान आचार्यको होयसल राज्यके कार्यकर्ता यह विशेषण दिया है । राजा बल्लाल १ के सेनापति मरियानेने बारहवीं सदीके प्रारम्भमें एक मूर्ति स्थापित की पो ( क्र० १८३ )। बारहवी सदी - प्रथम चरणके दो लेखोमे राजा विष्णुवर्धनकी रानी चन्तलदेवी तथा उसके बन्धु दुङ्मल्ल-द्वारा जिनमन्दिरोंको दान देनेका वर्णन है (क्र. १८८-८९ ) । इस समयके चार लेखोंमें (क्र० २००, २०१, २१२, २१३ ) विष्णुवर्धनके चार सेनापतियोंगंगराज, उसका पुत्र बोप्प, पुणिसमथ्य तथा मरियानेके धर्मकार्यो का - मन्दिर निर्माण, दान आदिका वर्णन है। राजा नरसिंह १ ने सन् ११५९मे एक मन्दिरको कुछ दान दिया था (क्र० २५२ ) तथा उसके सेनापति भरतिमय्य एवं माचियणने सन् ११४५ तथा ११५३ मे इसी प्रकारके दान दिये थे (क्र. २३३, २४६ ) । सन् १९७६ तथा ११९२ के लेखोंमे (क्र० २७१, २८२ ) राजा वीरबल्लाल २ द्वारा जिनमन्दिरोंको दान देने. का वर्णन है तथा सन् ११७३ एवं ११९० के लेखोंमें इसी राजाके अधीन अधिकारियों द्वारा ऐसे ही दानोंका उल्लेख है (क्र० २६८, २८१ )। इसी राजाके समयके तीन दानलेख और है (क्र० २८५, २८६, ३२३ ) जो सन् ११९९ से १२०७ तक के है तथा दो समाधिलेख है ( क्र० ३२०३२२)। राजा नसिह ३ ने सन् १२६५मे एक जिनमन्दिरको दान दिया था (क्र० ३४२ ) तथा उसके अधीन अधिकारियोंने सन् १२५७, १२७१ तथा १२८५ मे ऐसे ही धर्मकार्य किये थे ( क्र० ३३५, ३४५, ३५१)। एक लेखमे राजा रामनाथ-द्वारा पार्श्वनाथ मन्दिरको दान देनेका वर्णन है (क्र. ३६० ) तथा एक अन्य लेखमे राजा वीरबल्लाल ३ के समय सन्
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy