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________________ जैनशिलालेख-संग्रह ४७४ कारकल ( मैसूर) शक १४६६=सन् १५४५, काड [ यह लेख माघ शु० ३, गुरुवार, शक १४६६, क्रोधि संवत्सरका है। चन्दलदेवीके पुत्र चन्द्रवंशीय पाण्ड्यप्प वोडेयके राज्यकालमें कारिजे निवासी सिदवसयदेवरस-द्वारा कारकलके गुम्मटनाथ स्वामोको कुछ भूमि अर्पण किये जानेका इसमें उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९५३-५४ क्र० ३३९ पृ० ५२ ] ४७५ मूडबिदुरे ( मैमूर ) शक १४६८ = सन् १५४६, संस्कृत-कमड [ इस ताम्रपत्रमे बिलिगिके शासक वीरप्पोडेयको वंशावली छह पीढियों तक दी है । बिदुरे नगरकी त्रिभुवनचूडामणि बसतिके लिए इस शासकने चिक्कमालिगेनाडु विभागके कुडुगिनबयल ग्रामकी कुछ जमीनका उत्पन्न दान दिया था । इसी मन्दिरके चन्द्रनाथदेवको नैवेद्य अर्पण करनेके लिए एक चाँदीका प्याला और कुछ धन भी दान दिया था। यह दान वीरप्पके चाचा तिम्मरसको पत्नी वीरम्मके नामसे था। इसी तरह घण्टोडेयके पुत्र तिम्मप्पके नामसे चन्द्रनाथदेवके दुग्धाभिषेकके लिए कुछ दान दिया गया था। कात्तिक शु० ७, शक १४६८, विश्वावसु संवत्सर, यह इस दानकी तिथि थी। प्रथम आषाढ शु० १०, पराभव संवत्सर यह दूसरी तिथि दी है।] [रि० सा० ए० १९४०-४१ क्र. ए २ पृ० २३ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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