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________________ जैन शिलालेख संग्रह [ ४०३ के पिताका समाधिमरण पुष्य शु० ११, गुरुवार, युव संवत्सर शक १३१७ में तथा पितामहका समाधिमरण फाल्गुन व० १४, सोमवार, नल संवत्सरमे हुआ था । ] [रि० स० ए० १९३२-३३ क्र० ई १६७ पृ० १०७ ] २८८ ४०३ गूटी ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) १४वीं सदी, संस्कृत-कचढ [ इस लेखमें विजयनगरके राजा हरिहरके समय इरुग दण्डनायक - द्वारा एक जिनमन्दिर के निर्माणका उल्लेख है । कोण्डकुन्दान्वयकी परम्परामे वक्रग्रीव, एलाचार्य, अमरकीर्ति, सिंहनन्दि तथा वर्धमानदेशिकका उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९२०-२१ क्र० ३२६ पृ० १८ ] ४०४ हम्पी ( बेल्लारी, मैसूर ) शक १३१७ = सन् १३९५, संस्कृत तेलुगु [ यह लेख एक जिनमूर्तिके खण्डित पादपीठपर है । तिथि फाल्गुन व० १, सोमवार, भावसंवत्सर ऐसी दी है । शक वर्षके अंक लुप्त हुए हैं। मूलसंघ-बलात्कारगण-सरस्वतीगच्छके धर्मभूषण भट्टारकके उपदेशसे इम्मडिबुक्क मन्त्रीश्वर द्वारा कुन्दनवोलु नगरमे कुन्थुतीर्थकरंका चैत्यालय बनवाये जानेका इसमे उल्लेख है । यह मन्त्री बैचय दण्डनाथके पुत्र थे । संवत्सरनामानुसार यह शक १३१७ का लेख प्रतीत होता है । ]. [रि० स० ए० १९३५-३६ क्र० ३३६१० ४१ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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