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________________ जैन शिलालेख संग्रह [ ४०० २७ आ सोमग्वेयनु आ हुलिगेरेय माणिकसेहिगे विवाहमादी..." अवर मगलु नागवे २८ आकेय तन्दे माणिकसेट्टि समस्तरू भा वैश्चिसेहि हुकिगेरेगे दि हन्दिगुरूदकि प्र २६ ....आ नागब्बेयनू सलहि हिरिय हन्दिगुरूद चन्द्रनाथस्वामिगल चैत्यालय दोलु पूजे ३० शादिके श्रीकार्य नडेवन्तागि वृत्तियन् बिहु शासनव हाकिसिहरु बैचरसि तम् ३१ म सोसे नागवेयन् गेरसोध्येय सेट्टि गुतवायि भोजेय मग माणिकसेहियन् तानु विवा ३२ हव माडि भा माणिक सेट्टिय नन्वयमेतेन्दोडे गुच्छक्किय नागिट्टिय मगलु रामब्वे बाकेय पु ३३ त्र माणिकसेट्टि माणिकलेहिगू नागवेयवरिगू जनिसिद मक्कलु हरिसेहि कामण ३४ नेमणसेहि सरणसेहि संगप यिन्तैवरोळगे रामक्कनन् गरसोप्पंय रामण हेग्गडेय मंगराज ३५ णन भजणंगे विवाहव माडि आ वोजण्णसेहियू रामक्कन् सुखसंकथाविनोददि २८६ ३६ दिहल्लिगे गेरसोध्धेय अनन्ततीर्थंकर चैत्यालवनारब्धिसि महाप्रतिष्ठेयन माडिसि ३७ पिरुसं बिरलु सक वहस सासिरद मूनूर इदिनाल्कनेय प्रजापतिसंवत्सर ३८ द कार्तिक शुद्ध पंचमि आदित्यवार सन्यसनसमन्वितवागि स्वर्गस्तरादरु'' मदवल्लिगे ३३ रामशनवर सन्दे मोहलुगोण्डु चरित्रदिं नेगळे विक्रम संवत्सरद भाषार
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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