SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८३ हजनका लेख था । इनके कुलके होन्नपसेट्टि तथा नम्बिसेट्टि इन बन्धुओंने दिये हुए दानका विवरण इस लेखमें दिया था।] [ए० रि० मै० १९२८ पृ० ९५ ] ३६० हडजन ( मैसूर) शक १३०(१)=सन् , १३८४, कन्नड १ स्वस्ति श्रीमतु शकवरिष १३०""संवत्सरद २ ज्येष्ठ ब १ मा । श्रीमतु मैसुनार"ह३ उदनद तंडेयर कुलद बम्मय्यनवर सुपुत्र हिरि४ य मादण्णनवरु देवरिगे। श्रीमद् रायराजगुरु मंडलाचार्य ५ सकलविद्वज्जनचक्रवर्तिगलुमप्प सैद्धांतिदेवर प्रियगुडि केशवदे६ (वि)यरु आ केशवदेवियर भक्क मारदेवियरु स्वर्गग७ तरादरु । अवर निसिदियं माडिसि आ निसिदिय अर्चनेगे बि. ८ ९ तह क्षेत्र बसदिगे पूर्वदलुल्लगहेयिं तेकण ब ९ तिन असरिसदलु हत्तु खंडुग गहेयनु भारापू१० वकवागि नडव होंगे प्रा हिरिय मादण्णनवरु बिट्टदत्ति [ यह लेख मण्डलाचार्य सैद्धान्तिकदेवकी शिष्या केशवदेवीकी बड़ी बहन मारदेवीके समाधिमरणका स्मारक है। इस निसिदिको पूजाके लिए हिरिय मादण्णने स्थानीय बसदिको कुछ भूमि दान दी थी। लेखकी तिथि ज्येष्ठ व० १, रविवार शक १३० ( चौथा अंक लुप्त है ) दी है। तिथि और वारके योगसे यह शकवर्ष १३०६ निश्चित होता है।। [ए० रि० म० १९३८ पृ० १६४ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy