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________________ -३९. ] बेलगामेका लेख २७७ • यणदण्डनायकरु नागरखण्ड जिड्डुलिगेयन्तेर८ डेप्पत्तमं दुष्टनिग्र(इ) शिष्टप्रतिपालनं माडुत्तं ९ मु(खसं)कथाविनोददि राज्यं गेय्युत्तमिरे पट्टणद अधि१० कारि हेग्गडे सिरियण्णं तमंतरालिकेय भूलेवर्तमु११ ख्यवागि हेज़ुकडधिकारि चावुण्डरायनुं सोमय्य१२ नुं ममेयदे कोप(?)विसदधिकारि मालवेग्गडे इन्तिनि१३ बरं तंतम्म सुकर्म येत्तिप्पत्तक्कं सर्वबाधा१४ परिहारवागि सिरियण्ण'"आचार्य १५ पचनन्दिदेवर कालं कर्चि धारापूर्वकं माडि कोहरु ई धर्म१६ मं प्रतिपालिसिदंगे वारणासिकुरुक्षेत्रदल्लि साधिर १७ कविलेयिं वेदपालरप्प ब्राह्मण, कोह फल१८ मक्कु [ यह लेख होयसल राजा वीरबल्लालके राज्यवर्ष ९ सिद्धार्थसंवत्सरमे आषाढ शुक्लपक्षमे संक्रान्तिके दिन लिखा गया था । राजधानि बल्लिग्रामेके मल्लिकामोदशान्तिनाथदेवकी पूजाके लिए पद्मनन्दि आचार्यको कुछ करोंका उत्पन्न दान दिये जानेका इसमें निर्देश है। यह दान हेग्गडे सिरियण्ण, चावुण्डराय, सोमय्य और मालवेग्गडे इन चार अधिकारियोंने दिया था। इस समय नागरखण्ड और जिड्डुलिगे प्रदेशपर महाप्रधान सेनापति मल्लियणका शासन चल रहा था। बल्लाल द्वितीय अथवा बल्लाल तृतीय इन दोनोंके ९वे वर्ष में सिद्धाथि संवत्सर नहीं था। अतः अनुमान किया गया है कि यह बल्लाल ( तृतीय ) के २९वें वर्षके सिद्धार्थ मंवत्सरका उल्लेख होगा। तदनुसार सन् १३१९ यह इस लेखका वर्ष होगा।] [ए० रि० मै० १९२९ पृ० १२८ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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