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________________ जैन शिलालेख संग्रह [३४[इस लेखके प्रारम्भमें होयसल वंशके राजाओंकी परम्परा नरसिंह (तृतीय ) तक दी है। नरसिंहने राजधानी स्थित शान्तिनाथ जिनालयके लिए चिककन्नेयनाल्लि ग्राम दान दिया। यह दान मूलसंध-बलात्कारगणके कुमदचन्द्र भट्टारकके शिष्य माघनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्तीको दिया गया था। लेखमें कुमुदचन्द्रके पूर्ववर्ती १९ आचार्योंके नाम भी उल्लिखित हैं।] [ए. रि० म० १९४० पृ० १६४ ] ३७७-३७८ मूगूर ( मैसूर ) १३वीं सदी, कराड (अ) १ श्रीमूलसंघ देसियगण पुस्त २ कगरछ कोडकुंदान्वयक "हगेरे३ यतीर्थद प्रतिबद्धद भरतपण्डितरिगे ४ जक्कियब्वेय मगलु.... (ब) १ मूलसंघ देगसिण पुस्तकगच्छ कोंडकुंदान्वय इंगणेश्वर सं(घ)द श्रीभानुकीर्तिपं. २ डितदेवर शिष्यरप्प कान"नंदिदेवर गुडगलप्य भूगूर समस्त ३ गावुण्डगलु'कोडेयर बमदिय जीर्णोद्धारणवमा ४ डि"सिदर मंगलमहाश्री [ये दो लेख मूगूरकी आदिनाथबसदि तथा पार्श्वनाथबसदिके मूर्तियोंके पादपीठोपर है। पहलेमे मूलसंघ-देसियगणके क-हगेरे तीर्थसे सम्बद्ध भरत पण्डितके लिए जक्कियब्बेकी कन्या (नाम लुप्त )-द्वारा कुछ दान दिए जानेका उल्लेख है ! लेख अधूरा होनेसे विवरण स्पष्ट नहीं हो सकता। दूसरेमें मूल संघ-देसिगण-इंगणेश्वर संघके भानुकीति पण्डितके शिष्य - नन्दिके शिष्य गावुण्डों द्वारा मृगूरको कोडेयरबसदिके जीर्णोद्धारका उल्लेख है । लेखोंकी लिपि १३वीं सदीकी है।] [ए. रि० मै० १९३८ पृ० १८२-८३ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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