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________________ -३२१] बालूरके लेख २४९ था। इसमें भी रट्ट वंशके राजा कार्तवीर्य ( चतुर्थ ) तथा उनके मन्त्री बीचणका उनके पूर्वजोंके साथ परिचय दिया है। बेलगांवमें बीचणके द्वारा स्थापित रजिनालयके अधिष्ठाता शुभचन्द्र भट्टारक थे। ये मूलसंघ - कोण्डकुन्दान्वय-देशीयगण-पुस्तकगच्छके मलधारिदेवके शिष्य नेमिचन्द्रके शिष्य थे। इन्हे कूण्डि प्रदेशके कोरवल्लि विभागका उम्बरवाणि ग्राम दान दिया गया था। [ए० ई० १३ पृ. २७] ३२० बालूर ( धारवाड, मैसूर) कन्नड, राज्यवर्ष १६-सन् १२०५ [ इस लेखमे होयसल राजा वीरबल्लाल २ के समय राज्यवर्ष १६, क्रोधन संवत्सरमें आषाढ़ ३० ३ बुधवारके दिन मेघचन्द्रभट्टारकके शिष्य कसप गावुण्डकी इस निसिधिको स्थापनाका उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९४५-४६ क्र० २१९] ३२१ बालूर ( धारवाड, मैसूर ) कन्नड, १३वीं सदी [यह निसिधिलेख बहुत घिस गया है । 'श्रीवीतराग' इतने अक्षर पढ़े जा सकते है।] [रि० इ० ए० १९४५-४६ क्र० २१४ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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