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________________ -३१२] मरसे आदिके लेख २३३ ३११ मरसे ( मैसूर ) संस्कृत-कन्नड, १२वीं सदी १ श्रीमदविलसंधेस्मिन् नन्दिसंघस्त्यरंगल: अ. २ न्यो माति योशेषशास्त्रवा३ राशिपारगैः [ यह लेख एक खेतमे मिली पार्श्वनाथमूर्तिके पादपीठपर है। इसमे द्रविलसंघ-नन्दिसंघके अन्तर्गत अरुंगल अन्वलकी प्रशंसा है। यह श्लोक अन्य कई लेखोंमें पाया जाता है। लेखकी लिपि १२वीं सदीकी है। मूर्तिके वारेमें अन्य कुछ विवरण नहीं दिया है।] [ए० रि० मै० १९२९ पृ० १०६ ] मावलि ( मैमूर ) कन्नड, १२वीं सदी १ श्रीमत्परमगंभीरस्यावा(दा)२ मोघलांछनं जीयात् त्रैलोक्य३ नाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ श्री (म)४ लसंग कुण्डकुन्दान्वयद ५ काणू गण माधवचंद्रदेव(र गु)६ डि नागवे गोकवेय भगलु स(मा)७ धिविधियिद मुडिपि स्वर्ग८ स्तेयादलु मंगल महा ९ श्री श्री
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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