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________________ २३६ जैनशिलालेख-संग्रह [२८२१३.६३ गवय मोरडि चंचरिबल्लं मत्तवी कडलेयहल्लिय नैऋत्यद . बल्लरेय कणि-- ६४ यकलु खडेय"कोलबूबल्लं मत्तिय मरन''गल्लुत१ मत्तवी कल्लेपहल्लिय वायव्य६५ द सोरेनाड हल्लियबीडिन त्रिसन्धियोलु'""कर्गलमोरडि अलिं चंचरिवल्लं तेन्तट्ट वटवृक्ष म ६६ लिं मत्तवी कडलेयहल्लिय ईशान्य गुम्मनवृत्तिय त्रिसन्धिय ' नडुगणेय कूडित्तु इन्तिदु सीमाक्रम । मंगल महाश्री ६७ भूमिदानात् परं दानं । स्वदत्ता परदत्तां वा यो .६८ हरेत वसुन्धरां षष्टिवर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते क्रि मिः [ इस लेखके प्रारम्भमे होयसल राजाओंकी वंशावली वीरबल्लाल (द्वितीय ) तक दी है। वीरबल्लालने मैसेनाड प्रदेशके दो ग्राम-मच्छण्डि तथा कडलेहल्लि अभिनवशान्तिनाथमन्दिरको अर्पण किये थे। इस दानकी तिथि शक १११४ की उत्तरायणसंक्रान्ति थी। यह मन्दिर कई नाडुगौण्डोंने तथा सेट्रियोंने मिलकर बनाया था। मन्दिरके कार्यका निरीक्षण कर युवराजके प्रसन्न होनेपर राजाने यह दान दिया था। वासुपूज्य व्रतीन्द्रके शिष्य वज्रनन्दि सिद्धान्तदेव इस मन्दिरके प्रमुख थे। इनकी गुरुपरम्परामे द्रमिलसंघ-नन्दिसंघ-अरुंगलान्वयके निम्नलिखित आचार्योके नाम दिये हैगौतम, भद्रबाहु, भूतबलि, पुष्पदन्त, सुमति, अकलंक, वक्रग्रीव, वज्रनन्दि, सिंहनन्दि, परवादिमल्ल, श्रीपाल, हेमसेन, दयापाल, श्रीविजय, शान्तिदेव, पुष्पसेन, वादिराज, शान्तदेव, शब्दब्रह्म, अजितसेन, मल्लिषेण, श्रीपाल (द्वितीय)। श्रीपाल विद्यके शिष्य वासुपूज्यव्रतीन्द्र ही वज्रनन्दिके गुरु थे। वर्तमान समयमे यह लेख सोमपुरके निकट नंजेदेवरगुड नामक पहाड़ीपर है । वहाँके मन्दिरका रूपान्तर शिवमन्दिरमें हो गया है । ] [ए. रि० म० १९२६ पृ० ४७ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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