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________________ -२४२] सोमपुरका लेख २१३ २४ ल वीरबल्लालनि (दि) दुरिदत्तुच्छंगियोडे रिपुनृपति....पेल लुण्टे ॥ (१६ रणरंगांगणशूदक नवेदोडिन्तुच्छंगि नुर्चलित २५ तत्क्षणदि नोडे विराटराजपुर वोत्तुत्तायतु मुसान सेवुणरापोश नमात्रकं ने दरिल्लेन्दन्दु बल्लालदोर्गुणवं वाणिसलण्ण २६ बल्लवरदारी भूरिभूचक्रदोल ॥ (१७ ) विलयाद्रि येनिप सेवुण बलन'निचयाविल मकराकुलवी यदुकुलपरितलग२७ तवायतु बन्दु.....॥ ( १८ ) कन्दनहप्तारिरक्तं कूडे हयखुर दिन्दा 'गेलिगेत्तग्गद यादोल मुम्पेण"पेणन बेत्ति२८ .."भूतालि पुण्यराशीकृतविपुलतलं वीरबल्लालदेवं ॥ (१६) २६ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लम राजाधिराजपरमेश्वर परममट्टारक द्वारावतीपुरवराधीश्वरं वासन्तिकादेवीलब्ध३० वरप्रसाद रिपुसम्मदनविनोद यादवकुलाम्बरयमणि सम्यक्त्व चूडामणि शत्रुक्षत्रिय३१ मानमर्दनं वीररिपुदपंशर्पझंझानिल श्रीमद्वीय 'पराक्रमक प्रभाव । निरुपमात३२ क्यं प्रताप नविनयस्वभाव । सकलजनसत्याशीर्वाद ।""मुद्गर समरकेलिसंस३३ क्त""रिपुविजितादित्यप्रताप । सप्तांग विलास''सरस्वती .. स्तम्बरम राज३४ कण्ठीरव । पाण्डयकुल "दण्ड । पल्लवकुलयशोविपिनदावानल । सिंहलसपालकुरंगकुलपलायनकार३५ ण कठोरनिजविजयदोर्दण्ड ... । सकल रिपुनृपकुल' इत्यादि नामादि३६ समस्तप्रशस्तिसहितं श्रीमत्सार्वभौम संग्रामराम मिल्लमदिशा पट्ट"धरित्रोपट्ट मलेराजराज मलेपरोलगण्ड
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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