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________________ जैनशिलालेख संग्रह २६७ नदिहरलहल्लि ( धारवाड, मैसूर ) शक १०९(५) = सन् १९७३, कन्नड [ यह लेख कलचुर्य राजा रायमुरारि सोविदेवके समय श्रावण शु० (?) गुरुवार, शक १०९ (५), नन्दन संवत्सरका है। इसमें उल्लेख है कि दण्डनायक महेश्वरदेवके अधीन कर संग्रह करनेवाले अधिकारियोंने गोट्टगडि स्थित नागगावुण्डकी बसदिके लिए कुछ करोका उत्पन्न दान दिया। उस समय वनवासि प्रदेशपर कासिमय्य दण्डनायकका शासन चल रहा था। [रि० सा० ए० १९३४-३५ क्र० ई० ५९ पृ० १५२ ] २६८ बोगाडि ( मांड्या, मैसूर ) शक १०९५ = सन् १९७३, कन्नड १ श्रीमत् पार्थिवकुलचंद्र यदुवंशवाधिवर्धनचंद्र मीमभुजं ललना जनकामामिरामन् बल्लालं ॥ दिगिमंगलु मदविहलंगल मलुकलु कूर्मनिन्तोर्मेयु मोगमीयं भुजगाधिपं बहुमुखं सारल्कु यारसंगमंन्दुगुणोदग्रसमग्रलक्षणलसहोर्दण्डदोल संतोषं मिगे भूकामिनि यिदल आपदुलदि बल्लालभूपालन ॥ आ नृपनगण्य पुण्यं मानसरूपादुदैबिनं भुवनजनं मानोगतकनकाचलन् मानतरक्षेकदक्षरस्ननिधानं ॥ महांगमन्त्रकमनीयालंबितसुरराजज्यचरणाक्यन् एनलु सचितकीर्तिपराक्रमप्रभावनन् एनिसि २ माचिराज नेगल्दं ॥ तनुर्वि कामन(न)र्थिगीव गुणदि कल्पाद्रियं हेमाचलमं चारुचरित्रदिदुदधियं गांभीर्यदि स्थैर्यदि कनकाद्रीन्द्र
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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