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________________ ૧૮૨ जैनशिलालेख-संग्रह [२५६ १०८२, विक्रमसंवत्सर, कुम्भ मास शु० १० गुरुवार ऐसी है। इस दिन इस मन्दिरके लिए कुछ भूमि तथा व्यापारियों द्वारा कुछ करोंका उत्पन्न दान दिया गया था। यह मन्दिर हेम्माडिसेट्टिकी पत्नी सिरियबेके पुत्र मारिसेट्टिकी स्मृति में बनवाया गया था। मन्दिरके गर्भगृहकी पार्श्वनाथमूर्तिके पादपीठपर इमी समयकी लिपिमें निम्न वाक्य खुदा है-श्रीमत्पारिसनाथाय नमः ।। [ ए० रि० मै० १९३३ पृ० १२२, १२५ ] २५६ बाबानगर ( बिजापूर, मैसूर ) शक १०८३ = सन् ११६१, कनाड [ यह लेख कलचुर्य राजा बिज्जणदेवके समय शक १०८३, विक्रम मंवत्सरका है। इसमें मूलसंघ-देसिगणके मंगलिवेडके आचार्य माणिक्यभट्टारकका तथा मैलुगि नामक शासकका उल्लेख है । इसने कन्नडिगेके जैन बसदिको कुछ दान दिया था। ] [रि० सा० ए० १९३३-३४ पृ० १३० क्र० ई १२० ] गुत्तल ( धारवाड, मैसूर ) शक १०(८४) = सन् १९६२, कन्नड [ यह लेख गुत्त वंशके महामण्डलेश्वर विक्रमादित्यरसके समय पौष शु० १५, सोमवार, शक १०(८४) का है। इसमे केतिसेट्रि-द्वारा निर्मित पार्श्वदेवमन्दिरके लिए गजा-द्वारा भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है। पुस्तकगच्छके मलधारिदेव तथा सोमेश्वरपण्डितदेवका भी उल्लेख है ।] [ रि० सा० ए० १९३२-३३ क्र० ई ५१ पृ० ९६ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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