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________________ जैन शिलालेख - संग्रह ३१ मलेहल्लिय सुंदण किरुकरेयं अल्लिय होलगुप्त३२ गेयुं कोडियहल्लिय मुंदण किरुकेरेयं आबेदलेय ३३ हिरियकेरेय केलगण अडकेय तोटमुं । श्रन्तु सर्वाय सुद्धवागि देशियगणद बसदि ४ क्कं काणूर्गणद ब १५६ [ २१३ ३४ सदि वोन्दक्कं अन्तु पंच बसदिगे समानबागे इल्लि हुट्टि - ३५ द माचिगौडनु कसवगौडनु ॥ ३६ स्वदत्तां परदत्तां वा यो हरंत वसुंधरा षष्टिवर्ष सह३७ साणि विष्टायां जायते क्रिमि [ इस लेखमे होयसल राजा विष्णुवर्धनके महाप्रधान दण्डनायक मरियाने तथा भरतिमय्य-द्वारा दडिगनकेरे स्थानकी पाँच बसतियोंमें बाहुबलिकूट नामक बसतिका दान तथा कुछ भूमिके दानका निर्देश है । यह दान काणूर गण- तित्रिणिगच्छके मुनिभद्र सिद्धान्तदेवके शिष्य मेघचन्द्रदेवको दिया गया था ।] [ ए०रि० मै० १९४० पृ० १५६ ] २१३ कम्बदहति (मैसूर) १२वीं सदी - पूर्वार्ध (सन् ११३० ), कन्नड १ (द्रोह ) घरट्ट दण्डनायक गंगराजन मग बोपदेवरिगे रूवारि २ द्रोहघरट्टाचारि कन्नेवसदिमं माडिद ॥ मंगल महाश्री [ यह लेख स्थानीय शान्तीश्वर बसदिके भग्नावशेषोंमें है । यह बसदि दण्डनायक गंगराज के पुत्र बोप्पदेवके लिए द्रोहघरट्टाचारि नामक शिल्पकारने बनवायी ऐसा लेखमे कहा गया है । यह कन्नेवसदि अर्थात् निर्माताद्वारा बनवायी पहली वसदि थी । अतः इसका समय लगभग सन् १९३० है क्योंकि बोप्प द्वारा सन् १९३३ मे हलेबिडमें निर्मित दीवरबसदि विद्यमान है । ] ( ए०रि० मैं ० १९३९ पृ० १९३ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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