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________________ १४७ -२०१] बेलूरका लेख १६ सोडरिंगे सलुबुदु ॥ बसदिगे बिट्टीधर्मम१७ नोसदु करं सलिसुतिर्दर्गक्कुं पुण्य असव१८ सदि केडिसिदवर्गलु पसुबुं ब्राह्मण५९ न कोंद वधे समनिसुगु ॥ स्वदत्तां पर२० दत्तां वा यो हरेत वसुंधरां षष्टिवर्षस२१ हस्राणि विष्टायां जायते क्रिमि (:) [यह लेख होयसल राजा विष्णुवर्धनके राज्यमे मार्गशिर शु० ५, सोमवार, शक १०४४, प्लव संवत्सरके दिन लिखा गया था। दण्डनायक गंगपय्य-द्वारा सोवणदण्डनायकको स्मृतिमे हादरवागिलु ग्राममे एक जैन मन्दिरको स्थापनाका तथा उसे दिये गये दानका उल्लेख इस लेखमे किया [ए० रि० मै० १९३८ पृ० १६६ ] २०१ बेलूर ( मैमूर ) १२वीं सदी - पूर्वार्ध, कन्नड १ पुणिसचमूपनेम्बेसेव शासनवाचकचक्रवर्तिगिन्तेनिसलोडं पोगर्ते ननगागिरे पुट्टिद चामराज नाकण कुमरय्यनेम्ब रत्नत्रयमू२ तिगे पुत्रनोप्पिद पुणिसमदण्डनाथनुदितोदितचामचमूपसंभवं (1) __नमः सिद्धभ्यः (1) [ यह लेख किसी जैन मन्दिरके स्तम्भपर था। वह स्तम्भ बादमें केशवमन्दिरमै लगाया हुआ पाया गया। इसमें सेनापति पुणिस तथा उसके तीन पुत्र चामराज, नाकण तथा कुमरय्यकी प्रशंसा की है। यह पद्य अन्य लेखोंमें भी पाया गया है । पुणिस राजा विष्णुवर्धनका जैन सेनापति था।] [ए० रि० मै० १९३४ पृ० ८३ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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