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________________ -१९९ ] कोविलंगुलम्का लेख १४५ चालुक्यसम्राट् त्रिभुवनमल्ल विक्रमादित्य (षष्ठ) के माण्डलिक काकतीय बेतका पुत्र पोलरस ( प्रोल ) सब्बि प्रदेशपर शासन कर रहा था । बेतका महामात्य वैज था । वैजकी पत्नी याकमब्बे थी तथा पुत्र बेत पेगंडे था । बेत पेगडे प्रोलका मन्त्री था । इसको पत्नी मैलम थी । इसने अन्मकुन्द पहाड़ी पर कदललायदेवीका मन्दिर बनवाया तथा उसे उक्त तिथिको कुछ जमीन दान दी। इसी मन्दिरको उग्रवाडिके मेलरसने जो माधववर्मा के कुलमें उत्पन्न हुआ था-भी कुछ जमीन दान दी । कदललायदेवी सम्भवतः पद्मावतीका नाम है । इस समय यह मन्दिर ब्राह्मणोंके अधिकारमे है तथा वे उसे पद्माक्षी देवी कहकर पूजा करते हैं ।] [ ए० ई० ९ पृ० २५६ ] १६८ कोविलंगुलम् (रामनाड, मद्रास ) सन् १११८, तमिल [ एक भग्न मन्दिरके दक्षिण तथा पश्चिमकी आधारशिलापर यह लेख त्रिभुवनचक्रवति कुलोत्तु गचोलदेवके ४८वें वर्षका है । कुम्बनूरके २५ जैनों द्वारा मुक्कुडैयार के लिए एक मण्डप तथा सुवर्ण विमान बनवानेका इसमे निर्देश है । कुम्बनूर गाँव वेम्बुवलनाडु प्रदेशके शेगाट्टिरुक्कै विभागमें था । इस लेखमे त्रिछत्राधिपति देव तथा एक यक्षोकी तांबेकी मूर्तियोंकी स्थापनाका भी उल्लेख है । इस मन्दिरके लिए जमीन और प्याऊके लिए भी दान दिया गया था । इस लेखकी तमिल भाषा साहित्यिक दृष्टिसे बहुत अच्छी है । ] [ इ० म० रामनाड १७ ] १६६ ऐहोले ( बिजापुर, मंसूर ) चालुक्य विक्रमवर्ष ४४ = सन् १११९, कन्नद [ यह लेख त्रिभुवनमल्लदेव विक्रमादित्य षष्ठके समय वैशाख शु० ३, १०
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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