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________________ roaster स्तम्मका लेख - १५७ ] ५३ सुवर्णपीवरपयोधरि मैल (मया ) ५४ कमांबिकासुततदमात्यवेतह ५५ दयेश्वरि निश्चलक्ष्मि माविसलु || (६) 1. १४३ पश्चिम की ओर ५६ पददिंदालु कितालकं बेरेग (मं) गो ५७ पांगमं पंचरत्नदिनगोचित मागे ५८ निर्मिसि सुरस्त्री भाग्य सौभाग्य५९ सम्म (द) सौंदर्यमनादुतीवि ६० पदेदं कंजात संजातनी सु(दवी) ६१ मनेंदु मैलमननारार् बष्णिस-६२ लोकदोल ॥ ( ७ ) नुतरूपवति कला (व) - ६३ ति रतिरति श्रीसतिघटान्तकी- ६४ णीसतिर्येदमात्यबेतन सतियं सति वा ६५ क्षितियेल्लमेदे नुतिथिसुतिकुं- ६६ मुदर्दिदेने नेगल्द रमास्पदे मै॥ (C) ६७ लम भक्तिदेि माडिसि तन- ६८ यकर मागिरल बेहद (मे) गण गभ्युद ६९ कदलालयबसदिय ने सेयलु ॥ (९) ७० अदर्के नित्यपूजेगं धूपदीप (नि) वेद्य ७१ क्कं पूजारिगाहा (२) वस्त्रादि ७२ श्रीमत्रिभुवमलमंडळिकभूगलगं (91) ७३ लपुत्रनप्प काकतियपोलरसन रा- ७४ ज्यमुत्तरोसरामिवृद्धिप्रवर्ध मानमा ७५ गमम्म कुन्देयला चंद्रार्कवारं स ७६ लुम्वमिरे श्रीमन्चालुक्यविक्रमचर्ष
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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