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________________ -१९७ ] पुदुपट्ट आदि के लेख इसमें तिरुप्परुत्तिकुण्डुके ऋषिसमुदायके लिए एक नहर बनवानेके लिए कैतडुप्पूरको ग्रामसभा द्वारा कुछ भूमि करमुक्त रूपमें बेची जानेका उल्लेख है । यह लेख त्रिकूटबसदिके छतमे लगा है । ] [रि० स० ए० १९२८-२९ क्र० ३८२ पृ० ३७ ] १६६ पुदुप्पट्टु (चिगलपेट, मद्रास ) ११वीं - १३वीं सदी, तमिल अस्पष्ट [ स्थानीय जैन मन्दिरके मण्डपके एक स्तम्भपर यह लेख है । और अधूरा है । इसमे चोल राजा परकेसरिवर्मन्‌का उल्लेख हुआ है । ] [रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० ७९ पृ० १२ ] १६७ नमकोंडा स्तम्भ लेख ( वरंगलके समीप, आन्ध्र ) चालुक्य विक्रम वर्ष ४२ = सन् १११७, कन्नड़ पूर्वकी मोर १४१ १ श्रीमज्जिनेंद्रपदपद्मम ३ पतद्रमुनींद्रवंद्यं निः५ ण्डं रत्नत्रयप्रभवमुव७ भुवनाश्रय श्री पृथ्वीवल्लभ९ परमभट्टारक सत्याश्रयकु११ त्रिभुवन मल्लदेवर विजयरा१३ मानमाचंद्रार्कतारं सलुत्त१५ गतपंचमहाशब्द महामं (ड) १७ परममाहेश्वरं पतिहितच २ शेषमव्यानव्यात् त्रिलोकनृ४ शेषदोषपरिखंडन चंडका६ गुणैकतानं ॥ (१) स्वस्ति समस्त८ महाराजाधिराजपरमेश्वर१० लतिलकं चालुक्या मरणं श्रीम१२ ज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्ध१४ मिरे । तत्पादपद्मोपजीवि समधि १६ लेश्वरनन्म कुंडापुरवरेश्वरं १८ रितं विन (य) विभूषणं श्रीम
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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