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________________ जैनशिलालेख संग्रह [१८५'४ सनंगेदु दिवक्के सुन्दरव(र)सद ५ मि मालेगब्बगन्तियप्परो""वि(ने) ६ यमं माडि निसिदिगेय माडि ७ भवर गुड जगमणचारि ब८ रेद [ यह लेख फाल्गुन शु० ४, सोमवार, शक १०२२ विक्रमसंवत्सरमें लिखा गया था। एक व्यक्तिके ( जिसका नाम लुप्त हुआ है ) समाधिमरणके बाद उसके सहाध्यायी मालेयब्बेगन्ति-द्वारा इस निषिधिको स्थापना का इसमें उल्लेख है। उसके शिष्य जगमणचारिने यह लेख उत्कीर्ण किया था। [ए० रि० मै० १९३२ पृ० १६१ ] १८५ टोक ( राजस्थान ) संवत् ११५८ = सन् ११०२, संस्कृत-नागरी [ इस मूर्तिलेखमे आलाक नामक व्यक्तिका उल्लेख है । तिथि वै ( शाख ) शु० ७, संवत् ११५८ ऐसी दी है ।] [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० ४७२ पृ० ६९ ] १८६ होसुर ( जि० बेलगांव, मैसूर ) शक १०३० = सन् ११०८, काड [ इस लेखकी तिथि सोमवार, पौष शु० ५, शक १०३०, सर्वधारि संवत्सर, उत्तरायण संक्रान्ति ऐसी है । ( रट्ट वंशके ) लक्ष्मीदेव-द्वारा एक बसदिके लिए राजधानी वेणुपुरसे कुछ जमीन दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है। यह बसदि लक्ष्मीदेवने ही बनवायी थी।] [रि० सा० ए० १९४०-४१ ई० क्र. १५ १० २४१ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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