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________________ -१५५] गावरवाडका लेख ८६ य श्रीकलिदेवस्वामिजिनश्रीपादानेगे करकुंकुमश्रीगंधसहित यष्टविधार्चनेगे ८. कोर केपियरकेरेयिं मूढलु मत्तंर् पम्नेरदुमं याचार्य देवपुत्रि करुं सर्वाबाधप८८ रिहारवागि प्रतिपालिपरु ॥ दक्षिण ऐयावोलेयुमप्प प्रामादि वाडक्के श्रीगंगाडि ८९ य बसदिय पुरद मर्यादेय घले मूवत्तेंटु गेणु हस्त बेंगोल्लदंगे वृत्ति सल्लदु ॥ वर्धतां जिनशा९. सनं॥ ९१ गंगासागरयमुनासंगमदोलु बाणारसि गयेयेम्बो तीर्थगलोलात्म कुलद्विजपुंगवगोकुलमनलिदरिन्तिदनलि९२ दरु ॥ स्वदत्ता परदत्तां वा यो हरेत वसुंधरां । षष्ठिवर्षसहस्राणि विष्ठायां जायते कृमिः ॥ ९३ याचार्यर येकटिगनागि बेसकेरदुंब वृत्ति कुरिवर केते... ९४ न्दु ॥ याचार्यरु चबुड गवुडन हेसरिदुदक्के मूगवाड रन"" ९५ लद सीमेयलु कोह वृत्ति मत्तर वोदु यदु हॉलगरे । [ इस बृहत् शिलालेखके चार भाग हैं। पहले भागमें (पंक्ति१-४३) अण्णिगेरे नगरके गंगाडि जिनमन्दिरका वर्णन है। यह मन्दिर रेवकनिमंडिके पति बूतुगके स्मरणार्थ बेलवल प्रदेशके शासक गंगपेर्माडिने' बनवाया था तथा उसने उसे मूडगेरी, गुम्मुंगोल, इट्टगे और गावरिवाड ये चार गांव दान दिये थे। यह दान मूलसंधनंदिसंघ-बलगार गणके गुपकीर्ति । पण्डितको दिया गया था। गुणकीतिकी गुरुपरम्परा इस प्रकार थी-गंग १. रेवकनिर्मडि राष्ट्रकूट सम्राट कृष्ण (तृतीय) की बहन थी जो गंग राजा बूतुगको न्याही गयी थी। गंग पेमाडि इनके पुत्र मारसिंह (तृतीय) (सन् १६०७४) अथवा पौत्र राजमल्ल (चतुर्थ ) होंगे।
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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