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________________ जैन शिलालेख संग्रह १५३ सोरटूर (मैसूर) शक ९९३ = सन् १०७१, कन्नड [ यह लेख चालुक्य सम्राट् भुवनैकमल्लदेव ( सोमेश्वर २ ) के समय माघ शु० १, रविवार, शक १९३, विरोधकृत् संवत्सर, उत्तरायणसंक्रान्तिके अवसरपर लिखा गया था ( यहाँ माघ स्पष्टतः ग़लत है जो पौष होना चाहिए । ) उक्त समय महाप्रधान सेनाधिपति कडितवेगडे दण्डनायक बलदेवय्य द्वारा सरवुर ग्राम में स्थित बलदेवजिनालयके लिए कुछ भूमि अर्पण की गई थी । बलदेवय्यके पिता गंग कुलके अग्गलदेव थे, माता गोज्जिकब्बे थीं तथा उसके ज्येष्ठ बन्धुका नाम बेल्देव था । इस दानकी व्यवस्थापिका हुलियाज्जिके सूरस्तगण चित्रकूटान्वयके सिरिणंदिपण्डितकी शिष्या थीं । उक्त मन्दिरको सरवुरके दो सौ महाजनोंने भी कुछ भूमि, तेलघानी तथा घर अर्पण किये थे । सिरिणन्दिपण्डितकी गुरुपरम्परा इस प्रकार दी है - चंदनंदि - दावणंदि सकलचन्द्र कनकनंदि - सिरिणंदि । ] [ मूल कन्नडमे मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ पृ० १०७ ] १०२ [ १५३ - १५४ गावरवाड ( जि० धारवाड, मैसूर ) शक ९९३-९४ सन् १०७१-७२, कन्नड १ श्रीमत्परमगंमीरस्याद्वादामोघलांछनं । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ २ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रयं श्रीपृथ्वीवल्लभं महाराजाधिराजं परमेश्वर परमभट्टारकं स ३ स्याश्रय कुलतिलकं चालुक्याभरणं श्रीमद्भुवनैकमल्लदेवर विजयराज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धि प्रवर्धमानमाचं
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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