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________________ -१५२] मत्तिकट्टि श्रादिके लेख ९९ । १४६ मत्तिकट्टि (जि० धारवाड, मैसूर ) शक ९९० = सन् १०६८, कन्नड [यह लेख टूटा हुआ है । मत्तिक ग्रामकी कुछ जमीन पेगडे कालिमय्यने मतिरोन भट्टारकको दान दी इसका इसमें निर्देश है । ( यह नाम मतिसेन अथवा मल्लिसेन हो सकता है)। यह दान कालिमय्य-द्वारा निर्मित एक जिनालयके लिए दिया था। कालिमय्यको ( चालुक्य ) सम्राट त्रैलोक्य ( मल्लदेव ) का पादपद्मोपजीवी कहा है।] [रि० सा० ए ० १९४४-४५ एफ् ४२ ] १५०-१५१ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास ) सन् १०६८, तमिल [ इस लेखमें चोल वंशके राजा राजकेसरिवर्मन् वोरराजेन्द्रदेवके राज्य वर्ष ५में तिरुक्कामकोट्टपुरम्के निकट करन्द प्रामके जिन मन्दिरके लिए कुछ भूमि ग्रामसभाके तीन सदस्यों द्वारा दान दिये जानेका उल्लेख है। यहींके दूसरे लेखमें इस मन्दिरमें सततदीप रखनेके लिए कुछ बकरियोंके दानका उल्लेख है। इस लेखमें मन्दिरके देवताका उल्लेख अरुगर् देवर् वीरराजेन्द्रपेरुम्बल्लि आलवार ऐसा किया है। यह दान कालियूर प्रदेशके परम्वूर ग्रामके तुगिलिकिलान् अरयन् उडयान्-द्वारा दिया गया था।] [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र. १२९-१३० ] मत्तावार ( मैसूर) शक ९९१ %Dसन् १०६९, कमड १ श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलांछ
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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