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________________ २४ जैन शिलालेख संग्रह १४१ कोगलि ( जि० बेल्लारी, मंसूर ) शक ९७७ = सन् १०५५ जैन मन्दिरके आगे एक शेड में, कन्नड [ १४१ यह लेख चालुक्य सम्राट् त्रं लोक्य मल्लके राज्यकालका है । इसमें कहा है कि इस मन्दिरका निर्माण गंग राजा दुर्विनीतने किया था । लेखके समय जैन आचार्य इन्द्रकीर्तिने इस मन्दिरको कुछ दान दिया था । इन्द्रकीर्तिका वर्णन इस प्रकार किया है श्रीमदरुहच्चरणसरसिंहभृंग, कोण्डकुन्दान्वयसमूहमुखमंडन, देशीयगण कुमुदवनशरच्चन्द्र, कोकलिपुरेन्द्र, त्रैलोक्यमल्ल सद. सरसिकलहंस, कविजनाचार्य, पण्डितमुखाम्बुरुहचण्डमार्तण्ड, सर्वशास्त्रज्ञ, कविकुमुदराज, त्रैलोक्यमल्लेन्द्र कीर्तिहरिमूर्ति ] [ इ० ए० ५५, १९२६ पृ०७४, ३० म० बेल्लारी १९६ ] १४२ डम्बल ( मैसूर ) शक ९८१ = सन् १०५९, कन्नड [ यह लेख चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्यमल्लदेव ( सोमेश्वर १ ) के समय चैत्र शु० १३, रविवार शक ९८१, विकोरि संवत्सरके दिन लिखा गया था । इसमे धर्मवोलल्के नगरजिनालयके लिए बाचय्यसेट्टिके जमात बीरय्यसेट्टि द्वारा कुछ सुवर्णदान दिये जानेका उल्लेख है । ] [ मूल कन्नडमे मुद्रित ] [ सा० इ० इ० ११ पृ० ८९ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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