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________________ जैनशिलालेख संग्रह [१३६कई दानोंका उल्लेख लेखमें किया है। इसका समय उत्तरायण संक्रान्ति कहा है । वर्ष निश्चित नहीं है । ] [ मूल कन्नडमें मुद्रित ] [सा० इ० इ० ११ पृ० ९९ ] कल्याण ( नासिक, महाराष्ट्र) ११वीं सदी-पूर्वाधं, संस्कृत-नागरी [ यह ताम्रपत्र परमारवंशोय महाराज भोजके सामन्त यशोवर्मन्-द्वारा दिया गया है । श्वेतपद देशमे स्थित कल्कलेश्वर तीर्थके महीशबुद्धिक स्थानके मुनिसुव्रतमन्दिरके लिए कुछ जमीन, तेलघानियाँ, दूकानें, और १४ द्रम्म दान दिये जानेका इसमे निर्देश है। ] [रि० आ० स० १९२१-२२ पृ० ११८ ] १३७ हेब्बैलु ( मैसूर) शक ९७५ = सन् १०५३, कन्नड १ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वी२ वल्लम महाराजाधिराज परम३ श्वर परममट्टारक सत्याश्रयकुल४ तिलक चालुक्यामरण श्रीमत् त्रैलोक्य५ मल्लदेवर विजयराज्यमुत्त६ रोत्तरामिवृद्धिप्रवर्धमानमाचं. ७ द्रार्कतारं सलुत्तमिरे स्वस्ति स८ मधिगतपंचमहाशब्द महाम१ ण्डलेश्वरं पट्टियोम्बुचंपुरवरेश्वरं पना
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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