SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -१३४] सिंगरका देख सिंगकूर ( कोइम्बतूर-मद्रास ) पाक ९६७ = सन् १०४५, तमिल १ स्वस्तिश्री २ को नाहन वि३ विकरमशोल ४ देवकुं शे५ ल्लानिण्ड ६ याण्ड ना• पदावदु ८ अरत्तुला९ ण्देवन् १० पेरन् आण ना११ ण कणित मा १२ णिक्कच्चेट ५३ टि चन्दिरवश १४ तियिल मुक१५ मण्डगम् १६ एडुपित्ते१७ न (1) शकर या १८ ण्डु ९ १०० (६) (१०) ७ (1) १९ शिंगला (न्तक ) न् २० एण पुदु मुक२१ मण्डगम् (1) [ यह लेख शक ९६७ का है। इस वर्षको नाट्टन् विक्रमचोल राजाके ४०वें वर्षमे चन्द्रवसतिके मुखमण्डपके निर्माणका इसमे उल्लेख है। यह कार्य अरत्तुलान् देवन्के पौत्र कणित माणिक्क सेट्टि-द्वारा किया गया था।] [ए० इं० ३० पृ० २४३ ] १३४ अरसोबोडि (जि. विजापुर, म्हैसूर ) शक ९६९ = सन् १०४७, काड , स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर प
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy