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________________ [८६ ५४ जैनशिलालेख-संग्रह स्थित कादलरु ग्राम एलाचार्यको अर्पण किये जानेका उल्लेख है । उसकी माता कल्लब्बे-द्वारा निर्मित जिनालयके लिए यह दान दिया गया था । एलाचार्यको गुरुपरम्परामे निम्न नाम दिये हैं सूरस्थ गणके प्रभाचन्द्र योगीश-कल्नेलेदेव-रविचन्द्रमुनीश्वर-रविनन्दिदेव-एलाचार्य।] [रि० सा० ए० १९३४-३५ क० ए० २३ पृ० ७] कुडलर ( मैसूर ) शक ८८४ = सन् ५६२, संस्कन-कन्नड [ इस ताम्रपत्रमे गंग राजा मारसिंह-द्वारा मुंजार्य अपर नाम वादिघंघल भट्टको चैत्र शु० ५ शक ८८४, रुधिरोद्गारि संवत्सरके दिन गुरुदक्षिणाके रूपमे पूनाटु प्रदेशका बागियूर ग्राम दान दिये जानेका उल्लेख है। मुंजार्य पराशर गोत्रका ब्राह्मण था तथा 'स्याद्वादोदयशैलभास्कर-स्याद्वादरूपी उदयपर्वतके लिए सूर्यके समान था । ] [ ए० रि० म० १९२१ पृ० १८ ] कोकिवाड ( धारवाड, मैसूर ) १०वीं सदी, कझड [ यह लेव जिनशासनको प्रशंसासे प्रारम्भ होता है। राष्ट्रकूट राजा खोट्टिग तथा उनके सामन्त गंगवंशीय सत्यवाक्य कोंगुणिवर्म धर्ममहाराजका इसमे उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ८९ पृ० ३५ ] लक्ष्मेश्वर (मैसूर ) शक ८९३ = सन् ९७१, काड [ यह लेख बहुत घिस गया है। गंग राजा मारसिंघदेवके समय
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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