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________________ ૪ जैन - शिलालेख संग्रह मूलसंघ सरस्वतीगच्छ, बलात्कारगण, कुन्दकुन्द अन्वय, इसके बाद भट्टारको की परम्पराका क्रम सकलकीर्त्ति, भुवनकीर्त्ति, ज्ञानभूषण, विजयकीर्त्ति, शुभचन्द्र, सुमतिकीत्तिं, गुणकीत्तिं, वादिभूषण, रामकीत्तिं, और पद्मनन्दि । इस समय बाद - शाह श्री शाहाज्याहां (शाहजहाँ ) का राज्य प्रवर्तमान था । ] [ EI, II, p. 72. ] ७०३ शत्रुञ्जय; - प्राकृत-ध्वस्त । [ सं० १६८६ = १६२६ ई० ] श्वेताम्बर लेख । ७०४ नखोर ( Bihar Miridional ); – संस्कृत । [ सं० १६८६ = १६२ ई० ] श्वेताम्बर लेख । • [ H. T. Colebrook, Miscell, Essays, Vol. II ( 1837 ), p. 318-319, t et, tr; pl. VII, f.−4. ] ७०५ मलेयूर;— कन्नड़-भग्न | [ बिना काल-निर्देशका; लगभग १६३० ई० ( लू० राइस ). ] [ उसी पर्वतपर, पार्श्वनाथ वस्तिके प्राङ्गणमें पूर्वकी ओर एक पाषाणपर ] जीर्णोद्धारवनु माडि जिन-मुनिगर प्रतिनि अप्प तोरणस्तम्भदलि राय-करणिक देवरखरु तम्म पितृगळु चन्दप्पगू मायि• • "निलसि दीप-स्तम्भ तोरण मासि
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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