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________________ ६२ मूलसंघ के देशिय गया और क्राणूर यथ की अपनी बसदियां होती थीं और उन दोनों में वास्तविक मेद था यह बात हमें दडिंग से प्राप्त एक लेख से मालुम होती है जिसमें लिखा है कि होटल सेनापति मरियाने और भरत ने दडिगणफेरे स्थान में पाँच बसदियां बनवायी थीं उनमें चार तो देशिय गण के लिए और एक कारणूर गया के लिए ' । १४वीं शताब्दी के बाद क्राणूर गया का प्रभाव खाली भट्टारकों के श्रागे क्षीण हो गया। इसके बाद मिलते हैं । बलात्कार गण के प्रभावइसके विरले ही उल्लेख → बलात्कार गण: - इस गण के सम्बन्ध में हम कह चुके हैं कि नामसाम्य को देखते हुए यह यापनीयों के बलिहारि या बलगार गण से निकला है । बलिहारि और बलगार, सम्भव है, स्थान विशेष के सूचक हैं पर उससे निकले बलात्कार शब्द से ऐसा सूचित नहीं होता । बलात्कार शब्द का अर्थ पोछे १६ व शताब्दी के विद्वानों ने बतलाया है कि : चूंकि इस गण के श्रीदि नायक पद्मनन्दि श्राचार्य ने सरस्वती को बलात्कार से बुलाया था इसलिए बलात्कार गण और सरस्वती गच्छ नाम प्रसिद्ध हुआ । जो हो, लेखों से बलात्कार के इस की कोई सूचना नहीं मिलती । 3 बलात्कार गण का सर्व प्रथम नाम ले० लगभग ) में मिलता है जिसमें इस गण के और उनके शिष्य अनन्तकीर्ति का उल्लेख है । में इस गण के कुछ मुनियों की परम्परा दी गई है जो निम्न प्रकार है: नं० २०८ (सन् १०७५ ई० के चित्रकूटाम्नाय के मुनि मुनिचन्द्र लेख २२७ (सन् १०८७ ई० ) 1 नं० ५८ १. जैन एसटीक्वेरी माग ६, अंक २, पृ० ६६, २. दक्षिण भारत में चलनार नामक एक गांव था (मेडीयल जैनिज्म, पृष्ठ २२७ ) ३. जैन साहित्य और इतिहास ( प्र० सं० ) ट ३४३ ।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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