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________________ ५०० जैन-शिलालेख संग्रह पुण्यकी प्राप्तिके लिये, उसने निम्नलिखित दान दिया-चो दान बिदिकर बस्तिके वर्धमान-स्वामीकी ( उक्त ) उपासना और पूषाके लिये पहले दिया गया था और फिर छोड़ दिया गया था निम्नलिखित थे;-( यहाँ पूरी-पूरी विगत दी हुई है )। ये भूमिर्या, ( उक्त ) सर्व अधिकारों सहित, वर्धमानतीर्थकरके लिये दे दी गयीं थीं। ] [ EC, VIII, Sagar tl. No 164 ] मलेयूर, काद-भग्न । [शक १४१४ = १४९२ ई.] [उसी पहाड़ीपर, सम्पिगे-बागालुके पश्चिमको ओर ] शुभमस्तु शक-परिष १४१४ नेय वर्तमान परिधावि-संवत्सरद चैत्र-शु १ लू कनक-गिरिस्थ श्री विजयनाथ ... ... ... यक्के मलेय ... ... दिमण्ण-सेट्टिय ... ... ... हियरु कनकगिरिय ... ... समस्त ... ... १ के हत्तु होनिगे यरडु हण बड्डियलु कोट्टद्द अन्तरदलु इप्यत्तु होन्निगे वोप्पत्त ... ... ... १ के लक्ष ... ... ... खं, कोळगद ... ... ... दीप आरति-सेवे ....... [मलेयूरके दिमण्ण-सेटिके (पुत्र]... ... सेट्टिने कनक-गिरिपर स्थित विजयनाथदेवकी दीप-आरतिकी सेवाके शिवे, प्रत्येक १० होन्नुपर २ हणके व्याबके हिसाबसे, २० होन्नुका दान किया था।] [ EC, IV, Chamarajnager tl., No. 160 ]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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