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________________ जैन-शिलालेख-संग्रह ४६८ ने ललितपुर जिले में पाया था। यह देवगढ़ के पुराने किले के भग्नावशेषों के ऊपर उगे हुए जाल में मिला था । मि• ब्लैकका अनुमान है कि यह शिनालेख किसी ध्वस्त जैन मन्दिरका है। ___ इस शिलाखण्डका माप ६ फीट २ इञ्च x २ फीट ६ इञ्च है तथा मोटाई लेख की भाषा अत्यन्त शब्दाडम्बर सहित है। लेखके करीबन मध्य में (पंक्ति १५ ) में दिया हुआ काल अक्षरों और अको दोनोंमें खूब संभाल के साथ दिया हुआ है। वह यह है ... "गुरुवार, विक्रम सं० १४८१ के वैशाख मासको पूर्णमासी तथा शालिवाहन (शक ) सं० १३४६ के स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्नके उदयमें ।” गजाका नाम छोरी ( गोरी) वंशका शाह आलम्भक दिया हुआ है, यह मालव या मालवाका राजा (शासक ) था। श्री गजेन्द्रलाल मित्र, एल एल. डो, सो० आई० ई (Rajendralala Mitra, LL. D., C. I. E.) 3497 ale (पृ०६७ ) मे कहते हैं कि उन्हें इस नामके किसी राजांका पता नहीं है, लेकिन सुल्तान दिलावर गोरी ( Ghori) के द्वारा स्थापित मालवाके गोरी वंशमें द्वितीय सरदार सुल्तान हुशंग गोरो उर्फ अलप खाँ था, जिसने माण्डुका शहर बसाया, राज्यको राजधानी धारसे वहाँ हटायी, और १४०५ ई. से १४३२ ई. तक राज्य किया, और इसमें कोई संशयकी बात नहीं है कि इसी सरदारको संस्कृतमें 'आलम्भक' लिखा है। उमकी नयी राजधानीका नाम शिलालेख में मण्डपपुर दिया हुआ है। ते खका विषय होलो नामके जैन पुरोहित द्वारा पद्मनन्दि और दमवसन्तकी दो मूत्तियोका समर्पण है। यह समर्पण शुभचन्द्रकी आज्ञासे किया गया था। उनके नाममें कोई शाही विशेषण नहीं लगा हुआ है । लेखका प्रारम्भ बर्द्धमान नगरमें कान्तमें स्थापित होनेवाले वृषभ ( वृषभदेव, प्रथम तीर्थंकर ) की स्तुतिसे होता है। और इसका अन्तमें लेखकके अपने विषय
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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